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________________ धार्मिक व्यक्ति अजबबी व्यक्ति है छुट्टी, पांच-छह घंटे का दिन-वह भी आफिशियल रिकार्ड पर; पांच घंटे कौन काम करता है! घंटे, दो घंटे का काम दिन में; सुविधा, समय। और फिर भी अमरीका में सबसे कम समय आदमी के पास है। एक क्षण खड़े होकर देखने का समय नहीं कि वह कहीं खड़े होकर एक क्षण देख ले। भागा हुआ है। मनसविद कहते हैं कि आदमी रिटायर होता है, काम से विश्राम को जाता है, तो उसकी उम्र घट जाती है। अगर वह काम में रहता तो दस साल ज्यादा जिंदा रहता। अब वह दस साल कम जिंदा रहेगा। क्या हो गया? जिंदगी भर आदमी सोचता है कि वह दिन कब आए जब सब काम से निवृत्त हो जाएं, शांति से घर बैठे। और जब वह शांति से अपनी आरामकुर्सी में बैठता है, तब उसे पता चलता है कि अब क्या करें! क्योंकि अब न दफ्तर है, न दुकान है, न दफ्तर के कर्मचारी हैं, न नीचे-ऊपर के अफसर हैं, न अब कोई नमस्कार करता सड़क पर, न अब कोई चिंता करता। लोग ऐसे भूल जाते हैं, जो निवृत्त हुआ, निवृत्त हुआ। अब उसका किससे लेना-देना है? बच्चे तब तक बड़े हो गए होते हैं, वे अपने संसार में उलझ गए होते हैं उसी नासमझी में, जिसमें बाप निवृत्त होकर घर बैठे हैं, वे लग गए होते हैं। उनको समय नहीं है, सुविधा नहीं है। अब यह बाप निवृत्त होकर बैठे हैं; अब यह क्या करें? तो अमरीका में उन्होंने वृद्ध लोगों के लिए बड़े-बड़े आश्रम स्थापित किए हैं। और बड़े मजे की घटनाएं वहां घट रही हैं। वहां बूढ़े और बूढ़ियां पुनः प्रेम में पड़ जाते हैं। वृद्ध-आश्रम! क्या करेंगे वहां? मगर एक लिहाज से अच्छा है। हमारे मुल्क में भी वृद्ध-आश्रम खड़े हैं, एक-दो को मैं जानता हूं वृद्ध-आश्रम को। तो हमारे यहां तो वृद्ध स्त्री-पुरुष को भी पास रखना असंभव है। तो यहां एक मुल्क के वृद्ध-आश्रम को मैं जानता हूं। एक मेरे मित्र ने काफी रुपए खर्च करके एक वृद्ध-आश्रम खड़ा किया हुआ है। वे मुझसे कहते हैं कि इसका मुझसे किसी तरह छुटकारा हो जाए इस आश्रम का; क्योंकि कोई सत्तर-पचहत्तर वृद्ध हैं और वे सब इतना उपद्रव मचाते हैं। सोच ही सकते हैं, सत्तर-पचहत्तर वृद्ध ! एक ही घर में वृद्ध हो तो आपको पता है कि क्या कर सकता है! उसका भी कोई कसूर नहीं है। काम की आदत है जिंदगी भर की, और अब बेकाम है। तो वह काम तैयार करता है। वह जाल रचता है, षड्यंत्र खड़े करता है बैठे-बैठे। वह हर चीज में निंदा निकालता है, हर चीज में सुझाव देता है, हर चीज में सलाह देता है। वह घर भर के दिमाग को चलाने की कोशिश करता है। सत्तर-पचहत्तर वृद्ध एक जगह इकट्ठे कर लिए हैं। वे बताते हैं कि हम इतनी मुसीबत में पड़ गए हैं जिसका कोई हिसाब ही नहीं है। फिर बच्चों को डांटा भी जा सकता है, वृद्धों को डांटा भी नहीं जा सकता। वे सब अनुभवी हैं, ज्ञानी हैं, वे कोई मानने वाले नहीं हैं। अमरीका में फिर भी बेहतर है, वे वृद्ध और वृद्धाओं को साथ रख देते हैं तो उपद्रव थोड़े कम हो जाते हैं। वह फिर से जाल शुरू हो जाता है। आदमी काम के बिना रह नहीं सकता। मरते दम तक काम चाहिए। क्यों? काम हमारे लिए एक पलायन है, अपने से बचने का ढंग है। काम एक नशा है, एक शराब है, जिसको पीकर हम अपने को भूले रहते हैं। नशा छीन लो, मुश्किल में पड़ जाते हैं। तो लाओत्से कहता है, सब व्यस्त हैं, सारा संसार काम में लगा है; एक मैं ही अकेला बेकाम, अनएंप्लायड, मेरे पास कोई काम नहीं है, कोई धंधा नहीं है। एक नवजात शिशु जैसा, जो अभी मुस्कुरा भी नहीं सकता; एक बंजारा, जिसका कोई घर न हो। धार्मिक व्यक्ति ऐसा ही अजनबी व्यक्ति है-आउटसाइडर है। आज इतना ही। फिर कल हम बात करेंगे। रुकें पांच मिनट; कीर्तन करें; उसके बाद जाएं। 21
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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