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________________ हुत से सवाल हैं। एक मित्र ने पूछा है, श्रद्धा अंधविश्वास न बने, इसके लिए क्या करें? पहली बात, श्रद्धा के परिणाम से निर्णीत होता है कि श्रद्धा श्रद्धा है या अंधविश्वास है। आप किसी पर श्रद्धा करते हैं। वह आदमी गलत भी हो सकता है। वह श्रद्धा का पात्र न भी हो, यह भी हो सकता है। अगर ऐसे आदमी पर आप श्रद्धा करते हैं, तो लोग कहेंगे यह अंधश्रद्धा है। आप अंधे हैं, आपको दिखाई नहीं पड़ता कि वह आदमी गलत है। अगर आप ऐसे किसी सिद्धांत पर श्रद्धा करते हैं जिसके लिए वैज्ञानिक कोई प्रमाण नहीं है, तो लोग कहेंगे यह अंधश्रद्धा है। मेरी परिभाषा अलग है। कोई सिद्धांत वैज्ञानिक है या नहीं, यह बहुत महत्वपूर्ण नहीं है। अगर उस सिद्धांत पर श्रद्धा के कारण आपका जीवन वैज्ञानिक होता जाता हो, अगर उस श्रद्धा के कारण आप रूपांतरित होते हों, अगर वह श्रद्धा आपको शुभ और सत्य की दिशा में गतिमान करती हो, तो श्रद्धा है। और वह सिद्धांत कितना ही वैज्ञानिक हो, लेकिन उस पर भरोसा रखने से आपका जीवन और सड़ता हो, नीचे गिरता हो, तो अंधश्रद्धा है। जिस व्यक्ति पर आप श्रद्धा करते हैं, वह ठीक हो या गलत हो, यह असंगत है, निष्प्रयोजन है, इररेलेवेंट है। वह गलत ही हो और उस पर श्रद्धा आपको ठीक बनाती हो, उस पर श्रद्धा आपके जीवन को आनंद से और संगीत से, सौंदर्य से भरती हो, तो मैं इसे श्रद्धा कहूंगा। और वह आदमी बिलकुल ठीक हो और आपकी श्रद्धा उस पर • आपको नीचे गिराती हो दुख में, पीड़ा में, एक में, या आपकी गति को अवरुद्ध करती हो, उस श्रद्धा के कारण आप बढ़ते न हों, रुक जाते हों, तो मैं कहूंगा अंधश्रद्धा है। - इसका अर्थ यह हुआ कि श्रद्धा कैसी है, यह श्रद्धा करने वाले पर निर्भर है। श्रद्धा आब्जेक्टिव, वस्तुगत नहीं है, विषयगत नहीं है; विषयीगत है, सब्जेक्टिव है। एक पत्थर की मूर्ति में आप श्रद्धा करते हैं। अगर यह श्रद्धा आपके भीतर नए फूलों को खिलने में सहयोगी होती है, तो मैं कहंगा सम्यक श्रद्धा है। और खुद भगवान ही आपके सामने खड़े हों और आप उनमें श्रद्धा रखते हों, लेकिन वह आपको अंधेरे की तरफ ले जाती हो, तो मैं कहूंगा वह अंधविश्वास है। मेरा फर्क समझ लें। किस पर आपका विश्वास है, यह महत्वपूर्ण नहीं है, निर्णायक नहीं है। आपका विश्वास आपके लिए क्या करता है, यही महत्वपूर्ण है और निर्णायक है। तब हर आदमी तौल सकता है कि उसकी श्रद्धा श्रद्धा है या अंधविश्वास है। अगर आपके विश्वास आपको कहीं भी नहीं ले जाते और आप जहां थे वहीं सड़ते रहते हैं, तो वे अंधविश्वास हैं। क्योंकि श्रद्धा तो एक आग है। वह आपको जला देगी और बदल डालेगी। 253'
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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