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ताओ उपनिषद भाग ३
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लेकिन रामानुजम था, वह इसमें भी उपयोग नहीं करेगा। जब रामानुजम पहली दफा आक्सफोर्ड ले जाया गया और आक्सफोर्ड के प्रोफेसर हार्डी ने, जो वहां गणित के बड़े से बड़े ज्ञानी व्यक्ति थे, ऐसे सवाल रामानुजम को दिए जिनको बड़े से बड़ा गणितज्ञ भी पांच घंटे से पहले में हल नहीं कर सकता — उनको हल करने की विधि ही उतना वक्त लेगी, इतने बड़े आंकड़े थे - और हार्डी लिख भी नहीं पाया तख्ते पर और रामानुजम ने उत्तर बोला । तो हार्डी ने कहा कि पहली दफा मुझे गणितज्ञ दिखाई पड़ा। अब तक जो थे, वे सब बच्चे थे, अंगुलियों पर गिन रहे थे— अंगुलियां कितनी ही बड़ी हो जाएं! हार्डी ने कहा, मैं भी बच्चा मालूम पड़ा जो कि आंकड़े गिनता है अंगुलियों पर — अंगुलियां कितनी ही बड़ी हो जाएं! हार्डी इधर सवाल बोलें, उधर उत्तर आ जाए। यह क्या हो रहा था ? यह ज्यादा पढ़ा-लिखा लड़का नहीं था। मैट्रिक फेल था । यह पश्चिम के गणित के लिए एक बड़ा भारी प्रश्नचिह्न बन गया कि यह हो क्या रहा है ? इसका मस्तिष्क क्या कर रहा है? इसके मस्तिष्क की गति कैसी है ?
रामानुजम बीमार था। टी. बी. से मरा। हार्डी उसे देखने आए थे हास्पिटल में। गाड़ी बाहर खड़ी करके भीतर आए। रामानुजम ने ऐसा बाहर देखा, गाड़ी पर जो नंबर था, रामानुजम ने कहा कि हार्डी, यह नंबर सबसे कठिन नंबर है गणित के लिए। और उस नंबर के संबंध में उसने कुछ बातें कहीं। हार्डी, रामानुजम के मरने के बाद सात साल मेहनत करता रहा, कि उसने जो मरते वक्त नंबर देख कर कहा था, वह कहां तक सही है। सात साल में नतीजे निकाल पाया कि उसने जो कहा था, वह सही है। सात साल की लंबी मेहनत ? और हार्डी कोई छोटा-मोटा गणितज्ञ नहीं है। इस सदी के श्रेष्ठतम गणितज्ञों में एक है।
लाओत्से कहता है, लेकिन अगर कुशल हो गणक, अगर गणित की प्रतिभा हो, तो फिर सहारों की जरूरत नहीं पड़ती। ये सब सहारे हैं। तब क्या बिना सहारों के हल हो जाता है सवाल ?
हमारे लिए कठिन है, क्योंकि यह बात इंट्यूटिव है। हम तो जो भी करते हैं वह बुद्धि से करते हैं । बुद्धि को सहारा चाहिए। लेकिन बुद्धि के पीछे एक प्रज्ञा भी है, जो बिना सहारे के करती है। बुद्धि तो चलती है चींटी की चाल और प्रज्ञा छलांग लेती है। प्रज्ञा में विधि नहीं होती, मेथड नहीं होता । बुद्धि में मेथड होता है, विधि होती है। बुद्धि को कुछ भी करना है तो वह एक-एक कदम चल कर, पूरी विधि करेगी, तो ही नतीजे पर पहुंच पाएगी। बुद्धि के लिए नतीजा एक लंबी प्रोसेस, एक लंबी प्रक्रिया है। उसके पीछे एक प्रज्ञा है, जिसको बर्गसन ने इंटयूशन कहा है। वह प्रज्ञा किसी विधि से नहीं चलती, सिर्फ छलांग लेती है। प्रथम से अंतिम पर सीधी पहुंच जाती है; बीच की विधि होती ही नहीं ।
अब तो वैज्ञानिक भी कहते हैं कि जो श्रेष्ठतम खोजें हैं, वे बुद्धि के द्वारा नहीं होतीं, वे प्रज्ञा के द्वारा होती हैं। क्योंकि जिसका हमें पता ही नहीं है, उसकी विधि हम कर कैसे सकते हैं ? विधि बाद में हो सकती है। जिसका हमें पता ही नहीं है, उसकी विधि हम कर कैसे सकते हैं? इसलिए इस जगत में जो भी बड़ी से बड़ी विज्ञान की खोजें हुई हैं, वे सब छलांगें हैं।
मैडम क्यूरी को नोबल प्राइज मिली एक छलांग पर वह एक गणित हल कर रही थी, जो हल नहीं होता था । वह परेशान हो गई थी, वह हताश हो गई थी। और उस जगह आ गई थी, जहां उसने एक दिन सांझ को — कई रातें और कई दिन खराब करने के बाद सब कागज पत्र बंद करके टेबल के भीतर डाल दिए और उसने कहा, इस झंझट को ही छोड़ देना है। रात वह सो गई।
सुबह उठ कर वह बहुत हैरान हुई, टेबल पर जो लेटरपैड पड़ा था, उस पर उत्तर लिखा हुआ था, जिसकी वह तलाश में थी । कठिनाई और बढ़ गई, क्योंकि अक्षर उसी के थे। और तब उसने विचारा तो उसे खयाल आया एक स्वप्न का — कि रात उसे स्वप्न आया था कि वह उठी है और कुछ टेबल पर लिख रही है।