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ताओ उपनिषद भाग ३
आप अपने बचपन की याद मत करना, वह झूठी है; आपने खड़ी कर ली है। वह कल्टीवेटेड है, वह आपकी संयोजित है। आप याद नहीं कर सकते अपने बचपन की। आप अपने बचपन की जब याद करते हैं तो आपने जो कविताएं वगैरह पढ़ी हैं बचपन के संबंध में, वे आप समझते हैं आपके बचपन के बाबत हैं।
सच तो यह है कि मनसविद कहते हैं कि आदमी चार साल की उम्र के पहले का स्मरण नहीं कर पाता। और उसका कारण यह है कि चार साल का जीवन बच्चे का इतना दुखद है कि उस स्मृति को रखना मनुष्य के लिए हितकर नहीं है। इसलिए आदमी भूल जाता है। आपको याद आती है पीछे लौट कर तो ज्यादा से ज्यादा चार साल। बहुत बुद्धिमान हुए तो तीन साल तक आपको स्मरण आएगा। लेकिन वे तीन साल बिलकुल ब्लैंक हो जाते हैं, भूल जाते हैं। क्या हो गया? मनसविद कहते हैं कि जब अति दुख होता है मन में तो उसकी स्मृति रखनी उचित नहीं है; इसलिए मन उसकी स्मृति को पोंछ डालता है। खतरनाक है, वह स्मृति पत्थर की तरह छाती पर बैठ जाएगी। इसलिए मन की आयोजना है कि अति दुख हो, उसे भुला देते हैं हम। वह अचेतन में डूब जाता है।
हां, बच्चे को बेहोश किया जाए, हिप्नोटाइज किया जाए, सम्मोहित किया जाए, तो याद आ जाती है। लेकिन सम्मोहन में कोई बच्चा नहीं कहता कि मैं स्वर्ग में था। और सब बूढ़े कहते हैं कि हम स्वर्ग में थे, बचपन बड़ा सुखद था। असल में, आपको बचपन का अब कोई खयाल नहीं रह गया। यह बचपन आपने निर्मित किया हुआ है।
पहले आदमी भविष्य में सुख को रखता है, जब तक उम्र शेष रहती है। और जब मौत करीब आने लगती है तो भविष्य तो समाप्त हो जाता है, भविष्य में तो सिर्फ मौत दिखाई पड़ती है; इसलिए आदमी पीछे अपने सुख को रखने लगता है। एक बात पक्की है कि जहां आदमी है, वहां सुख नहीं होता। फिर पीछे रख लेता है। फिर वह सोचता है, कैसा आनंद था! ऐसा लगता है, बचपन में सभी कुछ आनंद था।
अगर बचपन इतना आनंदपूर्ण हो तो बच्चे बचपन छोड़ने से इनकार कर दें। लेकिन बच्चे जल्दी बड़े होना चाहते हैं। यहां तक कि बच्चे जितने बड़े होते हैं, उससे भी ज्यादा अपने को बड़ा बताना चाहते हैं। क्योंकि बड़ों के पास ताकत मालूम पड़ती है, स्वर्ग मालूम पड़ता है, सुख मालूम पड़ता है; नियंत्रण, मालकियत, सब उनके पास मालूम पड़ती है। बच्चा तो एकदम दीन-हीन, कमजोर मालूम पड़ता है। उसको लगता है कैसे जल्दी, जल्दी-जल्दी बड़ा हो जाए। इसलिए बच्चे बड़ों की आदतें सीख लेते हैं।
___ अगर छोटे बच्चे सिगरेट पीते हैं तो इसका कारण यह नहीं कि बच्चों को सिगरेट में कोई भी सुख मिलता है। जरा भी नहीं मिलता। बच्चों को बड़ी तकलीफ मिलती है। क्योंकि सिगरेट और बच्चे को कोई तरह का सुख नहीं दे सकती। सिगरेट से सुख लेने के लिए जरा ज्यादा उम्र की मूढ़ता चाहिए। बच्चा इतना मूढ़ नहीं होता। अभी इतनी ताजी कली है उसके मन की कि सिगरेट का धुआं सिर्फ दुख ही दे सकता है। लेकिन बच्चा उस दुख को झेल लेता है, कोई फिक्र नहीं; क्योंकि सिगरेट पीते ही पावरफुल मालूम होता है। वे जितने लोग सिगरेट पी रहे हैं, फिल्म अभिनेता हैं, राजनेता हैं, सड़कों पर ताकतवर लोग हैं, अपनी गाड़ी में बैठे हुए सिगरेट पी रहे हैं। वह बच्चा जब सिगरेट अपने मुंह पर रख लेता है, बचपन खो गया। अब वह बड़ों की दुनिया का भागीदार हो गया, हिस्सेदार हो गया। बच्चे सिगरेट पीना सीखते हैं, क्योंकि सिगरेट जो है, वह पावर-सिंबल है।
अनेक बच्चे हैं, मनसविद उनके बाबत जानकारी रखते हैं, जो जाकर जल्दी दाढ़ी-मूंछ बढ़ाना चाहते हैं। पिता घर न हों तो उनके रेजर का उपयोग करके जल्दी किसी तरह दाढ़ी-मूंछ आ जाए। कोई बच्चा बच्चा रहने को राजी नहीं है। भागना चाहता है बचपन से। स्कूल कारागृह से ज्यादा नहीं मालूम होता। शिक्षक समाज में सबसे बड़े चुने हुए दुष्ट मालूम पड़ते हैं। और यह खयाल बच्चों का कुछ दूर तक सही भी हो सकता है। क्योंकि मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि शिक्षक होने की जिनमें वृत्ति होती है, वे असल में डॉमिनेट करना चाहते हैं, वे लोगों पर रुआब बांधना चाहते
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