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धर्म है-स्वयं जैसा हो जाबा
पर मैं नहीं कहता कि आप धार्मिक हो जाएं। दुनिया में कोई किसी के कहने से कभी धार्मिक नहीं हुआ है। बल्कि इतने लोग जो अधार्मिक दिखाई पड़ते हैं, यह बहुत चेष्टा करने का फल है।
चार्ल्स डार्विन ने अपने आत्म-संस्मरणों में एक बड़ी हैरानी की बात लिखी है। उसने लिखा है, कुछ चीजें ऐसी हैं कि जो चेष्टा करने से विपरीत परिणाम लाती हैं। उसने कहीं यह पढ़ा था। वह तो वैज्ञानिक आदमी था , डार्विन। उसने सोचा, बिना प्रयोग किए कैसे...!
तो उसने अपने पड़ोस के दस जवान लड़कों को बुलाया। सुंघनी होती है नाक में सूंघने की। वह उन दसों के सामने रखी और उनसे कहा कि मैं तुमसे पूछता हूं, तुमने कभी यह नास, यह सुंघनी सूंघ कर देखी है? उन सब ने कहा, हमें अनुभव है, बड़े जोर से छींकें आती हैं। तो डार्विन ने कहा कि मैंने ये दस नगद सोने के सिक्के रखे हैं। जिसको भी छींक आ जाएगी सुंघनी लेने पर, नगद एक सोने का सिक्का उसे दूंगा।
उन दसों ने सुंघनी ली, बड़ी कोशिश की छींक को लाने की, रुपया सामने रखा था, छींक है कि नहीं आती है। आंख से आंसू बहते हैं, मुंह लाल हो जाता है; लेकिन छींक है कि नहीं आती है। दस में से एक भी सफल नहीं हुआ छींक लाने में।
आप भी सफल न होंगे; छींक लाने की कोशिश करें। छींक आती है, लाई नहीं जाती।
धार्मिक होना होता है; कोई आपको धार्मिक बना नहीं सकता। इसलिए धर्मगुरुओं ने मिला कर पृथ्वी को अधार्मिक बना दिया है। धर्मगुरुओं की चेष्टाओं का फल यह है कि किसी को छींक ही नहीं आती। सब लाने की कोशिश में लगे हैं। लेकिन मेकेनिज्म है। कुछ चीजें हैं, जो सहज हों, तो ही होती हैं। चेष्टा से हों, नहीं होती हैं।
और लाओत्से इसलिए सहज पर जोर देता है। वह कहता है, यह जो परम सत्य है जीवन का, यह सहज होता है। तुम जितने सहज हो जाओगे, यह छलांग लग जाएगी। तुम जितनी चेष्टा करोगे, उतनी यह छलांग असंभव है।
आज इतना ही। रुकें, पांच मिनट कीर्तन करें, और फिर जाएं।
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