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________________ बिष्क्रियता, बियति व शाश्वत बियम में वापसी तो जगत में दो नियम हैं। एक जिसे हम जगत कहते हैं, वहां परिवर्तन नियम है, दि चेंज इज़ दि लॉ। जिसे हम जगत कहते हैं, वहां परिवर्तन नियम है। सब कुछ नदी की तरह बहा जाता है। वहां कुछ भी पुनरुक्त नहीं होता और वहां कुछ भी ठहरा हुआ नहीं है। विज्ञान इसी परिवर्तन के जगत की खोज है। और इसलिए विज्ञान को रोज अपने नियम बदलने पड़ते हैं। . एक मजाक वैज्ञानिकों में चलता है। जैसा कि बाइबिल में कहा है कि ईश्वर ने कहा कि प्रकाश हो जा, और प्रकाश हो गया! तो वैज्ञानिकों में एक पुराना मजाक था कि जब न्यूटन पैदा हुआ, तो न्यूटन के साथ इतिहास एक नया मोड़ लेता है। विज्ञान के जगत में न्यूटन से ज्यादा कीमती आदमी दूसरा नहीं है। तो वैज्ञानिकों में एक मजाक प्रचलित हुआ कि ईश्वर ने कहा कि न्यूटन हो जा और न्यूटन हो गया! और फिर दुनिया कभी वैसी नहीं हो सकी, जैसी न्यूटन के पहले थी। फिर हुआ आइंस्टीन, तो किसी ने उस मजाक में थोड़ी बात और जोड़ दी। क्योंकि न्यूटन के साथ पैदा हुआ कानून, नियम। और न्यूटन ने जगत को समझाने के तीन नियम स्थापित किए, और सब चीजें व्यवस्थित हो गईं। न्यूटन पैदा हुआ, और सब चीजें व्यवस्थित हो गईं। तीन नियम सुनिश्चित रूप से निर्धारित हो गए। और सारा जगत न्यूटन के पहले एक केऑस था, एक अराजकता थी, न्यूटन के बाद एक व्यवस्था हो गई। फिर मजाक में किसी और दूसरे ने जोड़ दिया कि फिर ईश्वर न्यूटन से परेशान हो गया, और उसकी व्यवस्था से; क्योंकि सब व्यवस्थाएं उबाने वाली हो जाती हैं। तो ईश्वर ने कहा कि आइंस्टीन हो जा, और आइंस्टीन हुआ! एंड ही ब्राट दि ओल्ड केऑस बैक। और वह जो पुरानी अराजकता थी न्यूटन के पहले, आइंस्टीन ने वापस खड़ी कर दी। उसने सब नियम डगमगा दिए। सब अस्तव्यस्त हो गया। न्यूटन ने बामुश्किल, दो और दो चार होते हैं, यह सिद्ध किया। और आइंस्टीन ने कहा कि दो और दो चार कभी हो ही नहीं सकते। सब अस्तव्यस्त हो गया। और आइंस्टीन ने भी जो कहा, वह रोज बदलना पड़ता है, रोज बदलना पड़ता है। विज्ञान रोज बदलता रहेगा; क्योंकि विज्ञान जिसकी खोज करता है, वह जगत ही रोज बदलता चला जाता है। जिस चीज की हम खोज कर रहे हों अगर वह रोज बदलती जाती हो, तो उसका कोई भी फोटोग्राफ ज्यादा देर तक काम का नहीं रहेगा। दो-चार दिन बाद हमें पता चलेगा कि यह तो किसी और का चित्र है। चित्र तो ठहर जाएंगे और जगत चलता चला जाएगा। इसलिए जगत का कोई चित्र आत्यंतिक, अल्टीमेट नहीं हो सकता। आइंस्टीन ने कहा है कि जगत का ज्ञान कभी भी पूर्ण नहीं हो सकता; क्योंकि वह रोज बदलता चला जा रहा है। यह मामला कुछ ऐसा है कि आपके गांव का जो रास्ता है, स्टेशन पहुंच जाता है; क्योंकि स्टेशन चलती-फिरती नहीं है। कल आप जिस रास्ते से गए, आज भी जाएंगे, वहीं मिल जाएगी। लेकिन अगर स्टेशन चलती-फिरती हो, तो फिर रास्ते तय नहीं रह जाते। तब कभी गलत रास्ते से चला हुआ आदमी भी पहुंच सकता है और कभी सही रास्ते से चला हुआ आदमी भी न पहुंचे। वह तो स्टेशन थिर है, इसलिए रास्ते तय हैं। - अगर जगत ही एक अथिरता है, एक परिवर्तन है, तो उसके कोई नियम थिर नहीं हो सकते। इसलिए विज्ञान को हर दो, चार, पांच वर्षों में करवट बदल लेनी पड़ती है। तो विज्ञान आज से तीन सौ साल पहले तो कहता था कि सत्य की हमारी खोज है। बट्रेंड रसेल ने अभी कुछ वर्ष पहले कहा था, सत्य की बात बंद कर दो; सिर्फ सत्य के निकट पहुंचने की खोज काफी है। डोंट टाक अबाउट एब्सोल्यूट ट्रथ, ओनली एप्रॉक्सीमेट ट्रथ इज़ इनफ। बस करीब-करीब सत्य। लेकिन ध्यान रहे, करीब-करीब सत्य कुछ होता है? करीब-करीब प्रेम कुछ होता है? करीब-करीब चोरी कुछ होती है? करीब-करीब सत्य कुछ भी नहीं होता। करीब-करीब सत्य का मतलब यह है, ऐसा असत्य जो अभी काम 271
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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