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तटस्थ प्रतीक्षा, अस्मिता-विसर्जन व अनेकता में एकता
लगें। जिस दिन आपको अपना अस्तित्व अपने व्यक्तित्व से अलग मिल जाएगा, उस दिन आपके लिए द्वार खुल जाएंगे, आप झांक पाएंगे।
बुद्ध भी वस्त्रों का एक ढेर हैं; कृष्ण भी वस्त्रों का एक ढेर हैं; लाओत्से भी वस्त्रों का एक ढेर हैं। वह जो भीतर छिपा है, वह वस्त्रों से बिलकुल अलग है। वस्त्रों से उसे मत सोचें। लेकिन हम क्या करें? हम अपने को वस्त्र ही मानते हैं। भीतर का हमें कुछ पता नहीं है। अपने वस्त्रों के पार जाकर जो छिपा है, उसे देखें तो फिर सभी वस्त्रों के पार आपकी आंख पहुंचनी शुरू हो जाएगी।
__ चार-छह प्रश्न और रह गए हैं, वे अगली लाओत्से की बैठक होगी, तब हम उनकी चर्चा करेंगे। आज के लिए, इस चर्चा के लिए जो जरूरी प्रश्न थे, वे मैंने ले लिए हैं।
आज इतना ही। अब कीर्तन में सम्मिलित हों। चाहे मूढ़ता ही किसी को मालूम पड़े, पर सम्मिलित हों। और फिर जाएं।
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