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तटस्थ प्रतीक्षा, अस्मिता विसर्जन व अनेकता में एकता
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है कि जैसे बुद्ध को जब अपने अनुभव को कहना पड़ा, तो बुद्ध को अनुभव हुआ कि चारों तरफ विधायक बातें कही गई हैं और उन विधायक बातों को मान कर लाखों लोग भटक गए हैं।
जैसे एक आदमी कहता है कि मैं ईश्वर हूं। इसमें दो संभावनाएं हैं। एक संभावना यह है कि वह जो कहता हो, वह सच हो। इसमें दूसरी संभावना यह है कि वह जो कहता हो, वह झूठ हो और पाखंड हो । ये दोनों बातें संभव हैं। अगर सौ आदमी घोषणा करते हों ईश्वर होने की, तो बहुत संभावना यह है कि निन्यानबे लोग झूठ ही घोषणा करते हों। आदमी का अहंकार इसमें भी मजा ले सकता है कि मैं ईश्वर हूं। अहंकार के रास्ते बड़े सूक्ष्म हैं। और अहंकार को इससे ज्यादा मजा और किस बात में आएगा कि मैं ईश्वर हूं?
तो बुद्ध को ऐसा लगा, लाओत्से को भी ऐसा लगा, कि इस संबंध की विधायक घोषणा खतरनाक है। जरूरी रूप से गलत है, ऐसा नहीं । क्योंकि मंसूर जब कहता है अनलहक, तो ठीक ही कहता है । मंसूर की तरफ से इसमें कहीं भी भूल-चूक नहीं है। जब मंसूर कहता है मैं ब्रह्म हूं, तो मंसूर असल में यही कहता है कि मैं नहीं हूं, ब्रह्म है। और जब उपनिषद के ऋषि कहते हैं अहं ब्रह्मास्मि – मैं ब्रह्म हूं - तो उनका भी यही अर्थ होता है कि मैं अब कहां, ब्रह्म ही है। मैं ब्रह्म हूं, इसका यही अर्थ होता है। लेकिन अगर सत्य हो स्थिति, तब ।
लेकिन कोई पागल भी कह सकता है कि अहं ब्रह्मास्मि, मैं ब्रह्म हूं। और उसको रोका नहीं जा सकता। और डर इस बात का है कि ऐसे लोग भी लोगों को प्रभावित करेंगे। ऐसे लोग भी लोगों को आंदोलित करेंगे। और ऐसे लोग गलत रास्तों पर भटकाने का कारण भी बनेंगे।
घोषणा नहीं, घोषणा नहीं। लाओत्से ने भी कहा, घोषणा नहीं। संत घोषणा नहीं करेगा;
बुद्ध ने कहा, चुप रहेगा।
लेकिन चुप होना भी घोषणा है। आदमी कुछ भी करे, घोषणा होगी ही। और अगर समझ लें कि यहां जितने लोग बैठे हैं, वे सब यह मानते हों कि संत का लक्षण है कि वह घोषणा न करे, तो जो घोषणा नहीं करेगा उसे वे संत मानेंगे। तो जिसे संत अपने को मनवाना हो, वह घोषणा से बच सकता है।
बुद्ध और लाओत्से ने नकारात्मक का उपयोग किया। लेकिन बहुत शीघ्र दोनों मुल्कों में पाया गया कि अहंकार के रास्ते बड़े अदभुत हैं; वह विधायक से भी शोषण कर सकता है, नकारात्मक से भी शोषण कर सकता है। अगर आप मेरे पास आकर कहते हैं कि फलां व्यक्ति कहता है कि मैं ईश्वर हूं, तो मैं कहूंगाः वह संत नहीं है, क्योंकि संत घोषणा नहीं करते। मुझे देखो, मैं घोषणा नहीं करता ।
घोषणा हो गई। घोषणा नकारात्मक भी हो, तो हो जाएगी।
मेहरबाबा कहते हैं, मैं अवतार हूं। यह विधायक घोषणा है। कृष्णमूर्ति कहते हैं, मैं अवतार नहीं हूं। यह नकारात्मक घोषणा है। लेकिन दोनों घोषणाएं हैं। घोषणाओं से बचना मुश्किल है। कैसे बचिएगा ? कहां भागिएगा ? कुछ भी करिएगा, कुछ मत करिएगा; लेकिन आपका हर कृत्य वक्तव्य है। वक्तव्य से कैसे बचिएगा? मैं चुप रहता हूं, तो भी वक्तव्य देता हूं।
बर्नार्ड शॉ को एक मित्र अपना नाटक दिखाने ले गया था । मित्र ने एक नाटक लिखा है। और नाटक खेला जा रहा है। बर्नार्ड शॉ के बहुत पीछे पड़ा था। बामुश्किल, नहीं माना, तो बर्नार्ड शॉ गया। लेकिन समय सोया रहा। वह मित्र बहुत बेचैन हुआ। बामुश्किल तो यह आदमी आया और फिर पूरे समय घर्राटे लेता रहा। जब नाटक समाप्त हुआ, तो बर्नार्ड शॉ ने कहा कि बहुत अच्छा नाटक था। उस मित्र ने कहा, मुझे आप धोखा मत दें। क्योंकि आप पूरे समय सोए रहे, आपको वक्तव्य देने का कोई हक नहीं है। बर्नार्ड शॉ ने कहा, मेरा सोया हुआ होना ही मेरा वक्तव्य था। और जो मैं कह रहा हूं बहुत अच्छा नाटक है, वह इसलिए कह रहा हूं कि नींद बहुत अच्छी आई।