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________________ ताओ उपनिषद भाग २ आधे में रुक जाना। इसके पहले कि चाक वापस लौटने लगे, ठहर जाना। उसी पहेली का दूसरा हिस्सा लाओत्से कहता है कि किसी चीज को बार-बार महसूस करने से उसकी तीक्ष्णता मर जाती है। अगर तलवार पर धार रखी है और बार-बार उसकी धार को महसूस करते रहें कि धार है या नहीं, तो धार मर जाएगी। रही भी हो, तो भी यह बार-बार परीक्षा करने से मर जाएगी। लेकिन जिंदगी में हम यह भी करते हैं। अगर मेरा किसी से प्रेम है, तो दिन में मैं चार बार पता लगा लेना चाहता हूं कि प्रेम है या नहीं है। पूछ लेना चाहता हूं, उपाय करता हूं कि कह दिया जाए कि हां, प्रेम है। लेकिन जिस चीज को बार-बार महसूस किया जाता है, उसकी धार मर जाती है। प्रेमी ही एक-दूसरे के प्रेम की हत्या कर डालते हैं। और यह प्रेम के लिए ही नहीं, जीवन के समस्त तत्वों के लिए लागू है। अगर आपको बार-बार खयाल आता रहे कि आप ज्ञानी हैं, तो आप अपनी धार अपने हाथ से ही मार लेंगे। अगर आपको बार-बार यह स्मरण होता रहे कि मैं श्रेष्ठ हूं, तो आपकी श्रेष्ठता आप ही अपने हाथ से पोंछ डालेंगे। . जिस चीज को भी हम बार-बार एहसास करते हैं, वह क्यों इतनी जल्दी मिट जाती है? उसके कारण हैं। पहला कारण तो यह है कि हम उसी चीज को बार-बार एहसास करना चाहते हैं, जिसका हमें भरोसा नहीं होता। भीतर हम जानते ही हैं कि वह नहीं है। वह जो भीतर भरोसा नहीं है, उसी को पूरा करने के लिए हम जांच करते हैं। लेकिन जांच करने की कोई भी चेष्टा निरंतर, जिसकी हम जांच करते हैं, उसकी तीक्ष्णता को भी नष्ट करेगी ही। क्योंकि तीक्ष्णता होती है तीव्र पहले अनुभव में। और जितनी पुनरुक्ति होती है अनुभव की, उतनी ही तीक्ष्णता कम हो जाती है। मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं, ध्यान में हमें बहुत गहरा अनुभव पहली बार हुआ, लेकिन अब वैसा नहीं हो रहा है। अब वैसे अनुभव को वे रोज-रोज लाने की कोशिश में लगे हैं। तलवार की धार भी तीक्ष्णता खो देती है; ध्यान की धार भी तीक्ष्णता खो देगी। असल में, जिस अनुभव को हम पुनरुक्त करना चाहते हैं, पुनरुक्त करने के कारण ही वह अनुभव बासा हो जाता है। बासे होने के कारण उसकी संवेदना क्षीण हो जाती है। अगर आप एक ही इत्र का उपयोग करते हैं रोज, तो सारी दुनिया को भला पता चलता हो आपकी इत्र की सुगंध का, आपको पता चलना बंद हो जाता है। तीक्ष्णता मर जाती है। रोज की पुनरुक्ति, और आपके नासापुट संवेदना खो देते हैं। सुंदरतम रंग भी, अगर आप रोज-रोज देखते रहें, तो रंगविहीन हो जाते हैं। इसलिए नहीं कि वे रंग खो देते हैं, बल्कि इसलिए कि आंखें उनके साथ संवेदना का संबंध छोड़ देती हैं। इसलिए जो हमें मिल जाता है, उसे हम धीरे-धीरे भूल जाते हैं। इसका यह अर्थ हुआ कि जीवन उतना ही बासा हो जाएगा, जितना हम पुनरुक्ति की कोशिश करेंगे। और एक ही चीज को बार-बार अहसास करने की चेष्टा करेंगे, जीवन धीरे-धीरे मृत और बासा हो जाएगा। और हम सबका जीवन बासा और मृत हो जाता है। फिर न ही जीवन में कहीं कोई सुबह मालूम पड़ती है; न कोई सूरज की नई किरण फूटती है; न कोई नया फूल खिलता है; न कोई नए गीत का जन्म होता है; न कोई नए पक्षी आकाश में पर फैला कर उड़ते हैं। सब बासा हो जाता है। इस बासेपन का कारण क्या है? इस बासेपन का कारण है कि जो भी हमें अनुभव होता है, उसे हम बार-बार अनुभव करने की कोशिश करके उसकी तीक्ष्णता को मार डालते हैं। अगर मैंने आज प्रेम से आपका हाथ अपने हाथ में लिया, कल फिर आप प्रतीक्षा करेंगे कि वह हाथ मैं अपने हाथ में आपका लूं। और अगर मुझे भी लगा कि बहुत सुखद प्रतीति थी, तो मैं भी कल कोशिश करूंगा कि वह हाथ फिर अपने हाथ में लूं। और हम दोनों मिल कर ही उस सुख की अनुभूति को बासा कर देंगे। कल हाथ हाथ में आएगा और तब लगेगा कि कहीं कुछ धोखा हो गया।
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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