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________________ ताओ उपनिषद भाग २ अभी परमात्मा इस आदमी को जिंदा रखे जा रहा था, अभी उसके सामने भी साबित नहीं था कि यह आदमी बुरा है। लेकिन एक आदमी ने एक मंच पर बैठ कर, काला चोगा पहन कर और दस-पांच और अपने ही जैसे नासमझों की कतार खड़ी करके एक फैसला तय कर लिया कि यह आदमी बुरा है। यह आदमी खतम हो गया, यह मार डाला जाएगा। और इस आदमी की बुराई क्या थी? हो सकता है इसकी बुराई यह थी कि कहा जाता है कि इसने किसी की हत्या की है। अब यह बड़े मजे की बात है। इसने किसी की हत्या की है, इसलिए यह आदमी बुरा हो गया, इसलिए हम इसकी हत्या करने के हकदार हो गए। लेकिन अदालत आसानी से हत्या कर सकती है, क्योंकि अदालत के हाथ में ज्यादा ताकत है, राज्य की ताकत है। और मजिस्ट्रेट मजे से रात जाकर सो जाएगा निश्चित, क्योंकि उसे ऐसा नहीं लगता कि वह जिम्मेवार है। जहां कोई भी जिम्मेवार नहीं होता, वहां हम कुछ भी कर सकते हैं। क्योंकि गैर-जिम्मेवारी सबसे बड़ा उपद्रव है। एक मजिस्ट्रेट बिलकुल गैर-जिम्मेवार है। वह कहता है, कानून की किताब यह कहती है, बयान यह कहते हैं, गवाह यह कहते हैं, मामला तय हो गया। मैं तो कुछ हूं नहीं, मैं तो सिर्फ बीच का हिसाब लगाने वाला हूं। मैंने हिसाब लगा कर बता दिया कि दो और दो चार होते हैं। इस आदमी की फांसी होनी चाहिए। वह बाहर है। वह घर जाकर सांझ गीत गाएगा, रेडियो सुनेगा, ताश खेलेगा, खाने पर मित्रों को बुलाएगा, गपशप करेगा, रात प्रेम करेगा, सो जाएगा। वह सब करेगा। उसे बिलकुल कोई मतलब नहीं है, क्योंकि वह जिम्मेवार नहीं है। वादलेयर ने कहा है कि जब कोई आदमी पक्के भलाई के हिसाब से बुराई करता है, तो उससे बड़ी बुराई कभी भी नहीं होती। तो अगर आपको कोई सच में ही बड़ी बुराई करनी हो, तो पहले आपको सब हिसाब जुटा लेना चाहिए भलाई सिद्ध करने के। फिर आप बुराई कर सकते हैं। फिर कोई कठिनाई नहीं होती। इस दुनिया में सब युद्ध ऐसे होते हैं, सब राजनीति ऐसी होती है। पहले सिद्ध कर लेना होता है कि यह बुराई है, फिर आप काटिए मजे से, फिर कोई कठिनाई नहीं होती। फिर किसी को भी काटिए। और फिर मजा यह है कि जिसको आपने काटा है, कल वह आपको काटना शुरू करेगा, तब उसको भी कोई बुराई नहीं दिखती। तब कोई बुराई नहीं दिखती। एक दफा तय हमने कर लिया कि यह भलाई है, फिर हमें स्वतंत्रता मिल जाती है। पर मैं यह कहता हूं कि धार्मिक आदमी तय ही नहीं करता। वह कहता है कि हम असहाय हैं और हम अज्ञान में हैं। और जगत इतना विराट है कि हम क्या तय करें कि क्या भला है और क्या बुरा है। इस निर्णय को ही नहीं करता। और तब ऐसा व्यक्ति एक गहन संतत्व को उपलब्ध होता है। जिसमें कोई कंडेमनेशन, कोई निंदा, कोई प्रशंसा, दोनों ही नहीं होती। ऐसा व्यक्ति एकदम बालवत, लाओत्से ने कहा है, कमनीय, कोमल हो जाता है; बच्चे की भांति सरल हो जाता है। __ जो जरूरी प्रश्न थे, वह मैंने आपसे बात कर ली। एक-दो प्रश्न छोड़ देने पड़े हैं, क्योंकि वे सीधे संबंधित नहीं हैं। तो जिन मित्रों के हैं, वे मुझसे अलग आकर बात कर लेंगे तो उचित होगा। और एक प्रश्न ऐसा भी छोड़ना पड़ा है, जो संबंधित है, लेकिन बहुत बड़ा है। वह पुनर्जन्म के संबंध में है। उसे हम किसी अगली चर्चा में उठा सकेंगे। अभी बैठेंगे, जाएंगे नहीं। पांच-सात-दस मिनट, आज अंतिम दिन है, तो जितने आनंद से कीर्तन में डूब सकें, डूब जाएं। और जिन मित्रों को सम्मिलित होना हो, वे भी यहां आ जाएं। और मंच पर जो लोग खड़े रहते हैं, वे खड़े न रहें। जिनको खड़े होना है, वे नीचे आ जाएं। मंच पर तो सिर्फ जो नाचें पूरी तरह, वही हों। 134
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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