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________________ ताओ की साधना-योग के संदर्भ में गुरजिएफ के पास एक लेखिका, कैथरिन मैंसफील्ड-बड़ी लेखिका, नोबल प्राइज विनर-वह साधना के लिए आई। अब नोबल प्राइज विनर लेखिका हो, तो जरा ढंग की, सोच-समझ कर साधना देनी चाहिए। पर गुरजिएफ जैसे लोग बिलकुल बेढंगे होते हैं। गुरजिएफ ने उससे कहा कि बस तू अब एक काम कर कि सामने जो सड़क है, उसको कूट! उसके गिट्टी-पत्थर निकल गए हैं, उनको बिलकुल जमा डाल! उसने सड़क देखी, उसके प्राण के छक्के छूट गए। लंबी सड़क थी। उसने पूछा कि यह कितने समय मुझे करना पड़ेगा? गुरजिएफ ने कहा, जब तक मैं आवाज न दूं, तब तक तू अपना जारी रखा कर। जब मैं आवाज दे दूं कि बस बंद, तो तू बंद कर दिया कर। और ध्यान रखना, अगर आधी रात सोते में भी मैं कहूं कि उठ और शुरू कर, तो फिर शुरू कर देना है! और उसने कहा कि यह कितने दिन में पूरी होगी? गुरजिएफ ने कहा, उसकी फिक्र मत कर, क्योंकि कई लोग इसको उखाड़ने की साधना में भी लगते हैं। इसकी तू फिक्र ही मत कर; यह सड़क कभी सुधरती नहीं। इसे इधर तू जमाती रहेगी, उधर दूसरा तेरे सामने ही उखाड़ता रहेगा। और जब दूसरे दिन वह सुबह साधना में लगी, तो हैरान हो गई—वह जमा नहीं पाती है कि दूसरे उसको उखाड़ रहे हैं! वह सड़क वैसी की वैसी है। पसीना-पसीना हो जाती है। कई बार देखती है कि गुरजिएफ उसको आवाज दे। मगर वह अपना मजे से बैठा हुआ सिगरेट पीता रहता है। वहीं बैठ हुआ है आरामकुर्सी पर और अपना धुआं उड़ा रहा है। और उसका पसीना-पसीना चू रहा है, कभी उसने जिंदगी में पत्थर नहीं कूटे, कभी सड़क नहीं बनाई। हाथ में फफोले आ गए हैं, लहूलुहान हुई जा रही है। कई बार वह आवाज निकालती है कि शायद उसकी आह सुन ले। मगर वह अपना धुआं उड़ाता चला जाता है। वह उसकी तरफ भी नहीं देखता कि वह वहां है भी। वह अपने हाथ देखती है, आह करती है, कि किसी तरह हाथ देख ले, कि फफोले पड़ गए। वह देखता ही नहीं उसकी तरफ। सांझ हो गई, सूरज ढलने लगा। और वह है कि बैठा हुआ है; और वह अपना कर रही है। कोई आठ बजे उसने आवाज दी कि बस मैंसफील्ड! वह आई अंदर, तो आशा रखती है कि वह कहेगा: बहुत मेहनत की, पसीने-पसीने डूब गई, हाथ में खून आ गया है! लेकिन वह कुछ नहीं बोलता। वह कुछ बोलता ही नहीं। और रात दो बजे जाकर उसको फिर बिस्तर से उठा देता है कि वापस काम पर चलो! मैंसफील्ड कहती है कि मैं कितने दिन टिक पाऊंगी! यहां जिंदा रहना मुश्किल मालूम पड़ता है। गुरजिएफ ने कहा कि तुझे मिटाने का ही हम उपाय कर रहे हैं। और अगर तू राजी रही, तो तू तो मिट जाएगी, लेकिन उसको जान लेगी जो कभी नहीं मिटता है। और तीन महीने बाद जब मैंसफील्ड लौटी, तो उसने वक्तव्य दिया कि वह आदमी अजीब है। उसने मेरा सब पुराना नष्ट कर दिया। मैं बिलकुल नई होकर लौटी हूं। और उसकी बड़ी कृपा थी, क्योंकि मैं सोचती थी कि शायद वह मुझे कुछ अपनी किताबों के काम में लगाएगा, कुछ साहित्य के काम में लगाएगा। अगर उसने मुझे साहित्य और किताब के काम में लगाया होता, तो मैं, मैं की मैं वापस लौट आती। उसने मुझे ऐसे विपरीत काम में डाल दिया कि मेरा सब नोबल प्राइज, और मेरी सारी प्रतिष्ठा, और सारी इज्जत, सब मिट्टी में मिल गई। तीन महीने वह सड़क ही कूट रही थी और उस सड़क को, जिसको वह सुबह पाएगी कि सब उखड़ी पड़ी है, फिर वहीं से काम शुरू कर देना है। बड़ा निराशाजनक काम था। सफलता तो मिल ही नहीं सकती थी उसमें। सड़क कभी पूरी हो नहीं सकती थी। लेकिन बिलकुल विपरीत था और चित्त को तोड़ने में सहयोगी था। तीन महीने में वह भूल गई। तीन महीने में वह भूल गई; तीन महीने बाद उसने लिखा है कि उसी रास्ते से लोग गुजरते थे; जिस दिन पहले दिन मैं सड़क खोद रही थी, तो मुझे पता था कि मैं नोबल प्राइज विनर लेखिका हूं; तीन महीने बाद लोग वहां से गुजरते थे, मुझे यह भी पता नहीं था कि मैं कौन हूं। मैं राजी हो गई थी कि मैं एक सड़क पर गिट्टी जमाने वाली औरत हूं, और कुछ भी नहीं हूं। और उसने मेरे सारे अहंकार को पिघला दिया। . 131
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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