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ताओ उपनिषद भाग २
तो लाओत्से ने कहा, इतने दिन तक त चुपचाप बैठा रहा!
तो लीहत्जू ने कहा कि आपके पास चुपचाप बैठ कर इतना समझने को मिल रहा था कि बोल कर मैंने बाधा न डालनी चाही। बोलता, तो बाधा पड़ती।।
___लाओत्से ने कहा कि इसलिए अब मैं तुझसे कहता हूं कि तू पूछ सकता है। जिसको बोलने से बाधा पड़ने लगी, वह बोलने की बीमारी से मुक्त हो गया। अब बातचीत हो सकती है। अब शब्द दिक्कत न देगा। जिसने शून्य में रहने का आनंद पा लिया, अब उसे शब्द मार्ग से न हटा सकेगा। अब हम शब्द का आदान-प्रदान कर सकते हैं।
लेकिन कृष्ण के सामने जो शिष्य है, वह बहुत दूसरी तरह का है। और क्षण भी बहुत और है। युद्ध का क्षण है; यहां बारह साल चुपचाप बैठा भी नहीं जा सकता। पूरी परिस्थिति और है। और अर्जुन को अगर लाओत्से कहे कि कोई करने वाला नहीं है, जो हो रहा है, हो रहा है, तो अर्जुन भाग जाएगा। वह कहेगा, जब कोई करने वाला नहीं है, तो कोई भागने वाला भी नहीं है। वह भाग ही जाएगा, वह भाग जाएगा। यद्यपि वह भूल होगी उसकी, क्योंकि भागने में वह भागने वाला है। वह उसकी भूल है, वह सिर्फ अपने को धोखा दे रहा है।
हम सब अपने को धोखा दे सकते हैं। हम बड़े कुशल हैं। हम बड़े कुशल हैं। हम सब अपने को धोखा दे । सकते हैं। अगर हमें भागना हो, तो हम कहेंगे, भागने में हमारा हाथ ही क्या है? क्रिया हो रही है, हम सिर्फ साक्षी हैं। और हम भागेंगे; क्रिया नहीं हो रही है। क्रिया नहीं हो रही है। अर्जुन की जैसी मनोदशा है, उसमें अगर वह भागेगा भी तो कर्ता रहेगा। असल में, वह कर्ता होने के कारण ही उसको खयाल आ रहा है भागने का, कि ये मेरे प्रियजन हैं, इनको मार डालूंगा तो पाप लगेगा, मुझे पाप लगेगा। इसलिए भागना चाहता है।
इसलिए कृष्ण जो लड़ रहे हैं अर्जुन से, वे इसलिए लड़ रहे हैं, वे यह कह रहे हैं कि तेरा यह जो खयाल है कि तू कुछ करने वाला है, यह गलत है। और मैं जानता हूं कि अगर अर्जुन उस स्थिति में आ जाए और मैं को छोड़ दे और फिर धनुष-बाण को रख कर चला जाए, तो कृष्ण आखिरी मनुष्य होंगे उसे रोकने वाले। लेकिन वह जाना बड़े और ढंग का है।
__ मुझे एक लाओत्से के अनुयायी का एक स्मरण आता है। रांग कांग उनेजी नाम का एक बहुत बड़ा धनुर्विद हुआ। अर्जुन की वजह से मुझे याद आ गया। बहुत बड़ा धनुर्विद हुआ; लाओत्से का अनुयायी था। वह कहता था, तीर तो तुम चलाओ, लेकिन हाथ की मसल न हिले। अगर मसल हिल गई, तुम कर्ता हो गए। तीर तो तुम चलाओ, लेकिन हाथ की मसल न हिले। क्योंकि मसल हिल गई, तो तुम कर्ता हो गए। फिर तुमने तीर चलाया।
बड़ी मुश्किल बात थी। सम्राट को खबर मिली। और उसने कहा कि उस उनेजी को बुला कर लाओ। यह क्या पागलपन की बात है! इतना हम समझ सकते हैं कि एक आदमी चलाते वक्त यह भाव रखे कि मैं निमित्त मात्र हूं। यह भी हम समझ सकते हैं कि एक आदमी तीर चलाते वक्त अपने को कर्ता न माने, क्रिया का साक्षी रहे। लेकिन जब तीर चलेगा और धनुष उठेगा और प्रत्यंचा पर तीर चढ़ेगा और छूटेगा, तो मसल तो हिलेगी ही।
उनेजी बुलाया गया। उनेजी ने आकर अपना धनुष-बाण जब रखा, तो सम्राट की पूरी सभा में कोई उस धनुष-बाण को उठा भी नहीं सका। वह इतना वजनी था। कहते हैं वह अकेला आदमी था पूरे चीन में, जो उस धनुष-बाण को उठा सकता था। उसने धनुष-बाण उठा लिया, उसने बाण चढ़ाया। सम्राट ने आकर उसकी मसल देखी। वह ऐसी थी, जैसे छोटे बच्चे का हाथ हो। उसमें कहीं कोई मसल नहीं थी। उनेजी ने कहा, इसलिए मैं कहता हूं कि मैं तीर नहीं चला रहा हूं, तीर चल रहा है।
अर्जुन अगर ऐसी हालत में आ जाए और कह दे कि देखो, मैं नहीं जा रहा है, यह जाना हो रहा है, तो कृष्ण भी उसे रोकेंगे नहीं। लेकिन वह उस हालत में न था। असल में, लाओत्से के शिष्य होने की अर्जुन की योग्यता न
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