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बुद्ध का वचन बहुत कीमती है। बुद्ध ने कहा, जब तक मुझे मेरे भीतर के मूल्य का कोई पता नहीं था, तब तक सब चीजें मूल्यवान मालूम पड़ती थीं। अब जब भीतर का हीरा मिल गया, तो अब बाहर के सब हीरे फीके हो गए हैं।
लाओत्से कहता है, “फिर भी वे सब के आगे पाए जाते हैं।'
इतिहास की इतनी भीड़-भड़क्कम है, सब लोग आगे होने को उत्सुक और आतुर हैं। और अचानक, अचानक राजनीतिज्ञ खो जाते हैं, सम्राट खो जाते हैं, धनपति खो जाते हैं; और न मालूम कैसे लोग, जिन्होंने अपने को पीछे खड़ा कर दिया था, वे आगे खड़े हो जाते हैं!
लाओत्से को हुए कोई ढाई हजार वर्ष हो गए। ढाई हजार वर्ष में कितने लोग आए होंगे! लेकिन लाओत्से के आगे कोई भी आदमी खड़ा नहीं हो सका। और यह आदमी ऐसा था कि बिलकुल पीछे खड़ा हो गया था। इसके पीछे खड़े होने का हिसाब लगाना मुश्किल है।
कहा जाता है कि लाओत्से मरने के पहले चीन को छोड़ दिया; सिर्फ इसीलिए कि कोई उसकी समाधि न बना दे। मरने के पहले चीन छोड़ दिया, क्योंकि मरेगा तो कहीं कोई समाधि बना कर एक पत्थर न खड़ा कर दे। क्योंकि जब मैंने कोई निशान नहीं बनाए, तो मेरे मरने के बाद कोई निशान क्यों हो! लेकिन जो इस तरह अपने को पोंछ कर हट गया, उसे हम पोंछ नहीं पाए। सदियां बीत जाएं, लाओत्से को हम पोंछ नहीं सकते। वह ठीक कहता है कि तत्वविद अपने को पीछे रखते हैं, फिर भी वे सदा आगे पाए जाते हैं।
यह सदा आगे पाए जाने के लिए पीछे मत रख लेना। ऐसा नहीं होता। कि कोई सोचे कि चलो, ठीक है, तरकीब हाथ लगी; पीछे रख लो, आगे हो जाओ। नहीं, जो पीछे हो जाते हैं, वे आगे पाए जाते हैं। लेकिन अगर किसी ने अपने को आगे होने के लिए पीछे रखा, तो वह पीछे ही हो जाता है; आगे होने का कोई उपाय नहीं है।
तो इसमें कॉजल नहीं है, इसमें कोई कार्य-कारण संबंध नहीं है; कांसीक्वेंस है। यह खयाल रखना, नहीं तो भूल होती है। नहीं तो भूल होती है। लोग कहते हैं, अच्छी बात है। उनके मन को तृप्ति मिलती है। अहंकार कहता है, यह तो बहुत बढ़िया बात है। बिना आगे हुए आगे होने की तरकीब हाथ लगती है, तो हम पीछे हुए जाते हैं। लेकिन आगे हो जाएंगे? नहीं, पीछे हो जाता है अगर कोई आगे होने के लिए, तो पीछे होता ही नहीं। पीछे होने का मतलब ही है कि आगे का खयाल ही न रहा ।
इसलिए दूसरा जो वाक्य है, इट इज नॉट लिंक्ड कॉजली। यह पहले वाक्य के परिणाम की तरह नहीं है कि आग में हाथ डालो तो हाथ जलता है। ऐसा नहीं है। यह कांसीक्वेंस है, यह परिणाम है। इसको गणित की तरह मत सोचना कि पीछे खड़े हो जाएं, तो आगे पाए जाएंगे। कभी न पाए जाएंगे। पीछे खड़ा हो जाए कोई, तो आगे पाया जाता है। लेकिन पीछे खड़े होने का मतलब यह है कि आगे का जिसे खयाल ही छूट गया है। उसे फिर पता ही नहीं चलता कि मैं आगे खड़ा हूं, पीछे खड़ा हूं। मैं कहां हूं, यह उसे पता ही नहीं चलता
है।
“वे निज की सत्ता की उपेक्षा करते हैं, फिर भी उनकी सत्ता सुरक्षित रहती है । '
वे अपने को बिलकुल ही उपेक्षित कर देते हैं, भूल ही जाते हैं, अपनी चिंता ही छोड़ देते हैं; फिर भी उनकी सुरक्षा में कोई अंतर नहीं पड़ता। असल में, जैसे ही कोई व्यक्ति अपना बोझ छोड़ देता है, परमात्मा उसका बोझ खींचने को तैयार हो जाता है। जैसे ही कोई व्यक्ति कह देता है कि ठीक है, अब मैं चिंता न करूंगा अपनी वैसे ही सारा अस्तित्व उसकी चिंता करने लगता है। और जैसे ही कोई आदमी कहता है कि मैं अपनी चिंता, अपनी चिंता...। सारा अस्तित्व उसकी चिंता छोड़ देता है। और वह एलियनेटेड हो जाता है; वह इस पूरे जगत के बीच एक अजनबी हो जाता है, जो नाहक ही अपना बोझ ढोता है।
“चूंकि उनका अपना कोई स्वार्थ नहीं, इसलिए उनके लक्ष्यों की पूर्ति हो जाती है। '
मनुष्य के इतिहास में बोले गए सबसे ज्यादा पैराडाक्सिकल वचन हैं, और सबसे मूल्यवान। इन एक-एक वचन से एक-एक बाइबिल निर्मित हो सकती है। लाओत्से कहता है कि चूंकि उनका अपना कोई स्वार्थ नहीं, उनके सब स्वार्थ पूरे हो जाते हैं। वह कह यह रहा है कि स्वार्थ, जीवन का जो परम आनंद है, वही जीवन का स्वार्थ है। जो व्यक्ति अहंकार को छोड़ देता है, वह परम आनंद को उपलब्ध हो जाता है। और जो व्यक्ति अहंकार को छोड़ देता है, उसके लिए भय समाप्त हो जाता है। क्योंकि अहंकार के साथ भय है कि मैं मिट न जाऊं, नष्ट न हो जाऊं, हार न जाऊं, असफल न हो जाऊं। ये सब भय समाप्त हो गए। जहां भय नहीं है, वहां सुरक्षा है।
हम तो उलटा करते हैं। जितनी सुरक्षा करते हैं, उतने असुरक्षित हो जाते हैं। और जितने बचना चाहते हैं, उतने भयभीत हो जाते हैं। और जितना सोचते हैं कि अपने को बचा लें, बचा लें, बचा लें, उतना ही पाते हैं कि अपने को खोते चले जा रहे हैं, खोते चले जा रहे हैं।
एक आखिरी बात, फिर हम कल बात करेंगे।
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