SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 258
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free डाक्टर राम मनोहर लोहिया मिलने गए थे। तो उनकी पत्नी ने लोहिया को कहा कि आपको मैं समय तो दे देती हूं; लेकिन इस समय पर मिलना हो सकेगा, नहीं हो सकेगा, यह कुछ नहीं कहा जा सकता। पर लोहिया ने कहा कि मेरे पास ज्यादा समय नहीं है, मैं मुश्किल से घंटे भर का समय निकाल कर आऊंगा। अगर मिलना न हो सका, तो बड़ी अड़चन होगी। उसकी पत्नी ने कहा, हम कोशिश करेंगे; लेकिन आइंस्टीन भरोसे के नहीं हैं। और वही हुआ। जब लोहिया पहुंचा, तो पत्नी ने कहा, आप बैठें, अब मैं कोशिश करती हूं। दरवाजे पर दस्तक दे रही हूं, वे अपने बाथरूम में चले गए हैं। कब निकलेंगे, कहना मुश्किल है। वे पांच घंटे बाद ही निकले। पूछा लोहिया ने कि इतनी देर आप करते क्या थे? आइंस्टीन ने कहा, एक सवाल में उलझ गया। तो सवाल पर ध्यान अगर बहुत चला जाए, तो आइंस्टीन भी मिट गए, वह बाथरूम भी मिट गया। वे कहां हैं, यह बात भी समाप्त हो गई। ध्यान किसी भी चीज पर चला जाए, तो यहां भीतर अहंकार तत्काल कट जाता है। इसलिए बड़े वैज्ञानिक अक्सर निरहंकारी हो जाते हैं, बड़े चित्रकार निरहंकारी हो जाते हैं, बड़े नर्तक निरहंकारी हो जाते हैं। और बड़े त्यागी कभी-कभी नहीं हो पाते; क्योंकि त्यागी पूरा ध्यान अपने पर देता है। यह न खाऊं, यह न पीऊं, यह न पहनूं, यह पहनूं, इस जगह सोऊं, उस जगह उठूं! कहने को वह त्यागी होता है; लेकिन टू मच ईगो कांशस पूरे वक्त मैं यह करूं और न करूं - सारा ध्यान मैं पर होता है। इसलिए अक्सर यह दुर्घटना घटती है कि त्यागी अहंकार से मुक्त नहीं हो पाते और कभी-कभी साधारण, जिनको हम भोगी कहें, वे अहंकार से मुक्त हो जाते हैं। लेकिन सीक्रेट, राज एक ही है। आपका ध्यान आप पर कम जाए, तो आपके अहंकार को तेल नहीं मिलता। आपका ध्यान आपसे बाहर जाए! कितने अपने ध्यान को आप बाहर पहुंचा सकें, वही आपके निरहंकार होने की यात्रा है। तो लाओत्से का यह वचन, “स्वर्ग और पृथ्वी दोनों ही नित्य हैं। इनकी नित्यता का कारण है कि ये स्वार्थ सिद्धि के निमित्त नहीं जीते। इसलिए इनका सातत्य संभव है।' इसलिए ये सदा रह सकते हैं, इनके मिटने की कोई जरूरत नहीं है। मिटता केवल अहंकार है। इस जगत में मिटने वाली चीज केवल अहंकार है। केवल एक ही चीज है, जो मॉर्टल है। इसे थोड़ा कठिन होगा खयाल में लेना । इस जगत में न तो पदार्थ मिटता कभी, न आत्मा मिटती कभी, सिर्फ मिटता है अहंकार। शरीर कभी नहीं मिटता । मेरा यह शरीर, मैं नहीं था, तब भी था। इसका एक-एक कण मौजूद था। इसमें कुछ नया नहीं है। इस शरीर में जो कुछ भी है, वह सब मौजूद था। जब मैं नहीं था, तब भी जब मैं नहीं रहूंगा, तब भी मेरे शरीर का एक कण भी मरेगा नहीं, सब मौजूद रहेगा। शरीर तो शाश्वत है, कुछ मरने वाला नहीं है उसमें । वैज्ञानिक कहते हैं कि हम एक छोटे से कण को भी नष्ट नहीं कर सकते। कुछ भी नष्ट नहीं किया जा सकता। शरीर में सब कुछ जो है, वह शाश्वत है। जल जल में मिल जाएगा; आग आग में खो जाएगी; आकाश आकाश से एक हो जाएगा। लेकिन सब शाश्वत है। आकार खो जाएगा; लेकिन जो भी उस आकार में छिपा है, वह सब मौजूद रहेगा। मेरी आत्मा भी नहीं मरती। फिर मरता कौन है? मरना घटता तो है! मृत्यु होती तो है ! सिर्फ मेरे शरीर और आत्मा का संबंध टूटता है। और उसी संबंध के बीच में वह जो एक अहंकार है, दोनों के मेल से जो रोज-रोज मैं पैदा कर रहा हूं, वह अहंकार टूटता है। लेकिन अगर मैं जान लूं कि वह अहंकार नहीं है, तो मेरे भीतर मरने वाला फिर कुछ भी नहीं है। और जब तक मैं जानता हूं, मैं अहंकार हूं, तब तक मेरे भीतर अमृत का मुझे कोई भी पता नहीं है। न हो सकता है पता । कोई उपाय भी नहीं है। आइडेंटिफाइड विद दि ईगो, पूरे हम एक हैं मैं के साथ, तो मृत्यु के सिवाय कुछ और होने वाला नहीं है। क्योंकि जिस चीज के साथ हमने अपने को जोड़ा है, वह अकेली चीज इस जगत में मरणधर्मा है। यह बहुत हैरानी का वक्तव्य मालूम पड़ेगा। इस पूरे जगत में एक ही चीज मरने वाली है, वह अहंकार है। बाकी कोई चीज मरती नहीं । क्योंकि एक ही चीज पैदा होती है, वह अहंकार है। बाकी कोई चीज पैदा होती नहीं। बाकी सब चीजें हैं। सिर्फ अहंकार पैदा होता है, वह बाई-फिनामिना है। जैसे मैं रास्ते पर चलता हूं, सूरज था। मैं जब नहीं चल रहा था रास्ते पर, सूरज था। भरी दोपहर है, सूरज ऊपर है, रास्ता है। मैं अपने घर में बैठा हूं; मैं भी हूं, सूरज भी है। फिर मैं सूरज की रोशनी में आया, तब एक नई चीज पैदा होती है, वह मेरी छाया है। वह नहीं थी। जब मैं घर के भीतर था, वह नहीं थी। जब मैं घर के भीतर था, तब वह सूरज के नीचे भी नहीं थी । वह घर के भीतर भी नहीं थी, सूरज के नीचे भी नहीं थी। मैं सूरज के प्रकाश में आया, तो मेरे और सूरज के संबंध से पैदा हुई एक बाइप्रॉडक्ट है। वह मेरे पीछे बन गई छाया है। वह छाया मरणधर्मा है। जैसे ही मैं हट जाऊंगा या सूरज हट जाएगा, वह छाया खो जाएगी। अभी भी वह है नहीं। और अगर मैं समझ लूं कि मैं छाया हूं, तो मैं मुश्किल में पडूंगा; उसी मुश्किल में पडूंगा, जैसा मैंने सुना है कि एक लोमड़ी पड़ गई थी। सुबह निकली थी। सूरज निकल रहा था। देखी उसने छाया, बड़ी लंबी थी! सोचा, आज भोजन के लिए कम से कम एक ऊंट की जरूरत पड़ेगी। क्योंकि अपनी छाया को देख कर ही तो पता चलता है कि कितने बड़े हम हैं। और तो कोई उपाय भी नहीं है। लोमड़ी को पता भी कैसे चले कि कितनी बड़ी है। छाया! जब उसने देखा, इतनी बड़ी मेरी छाया है, तो मेरे बड़े होने में संदेह क्या! सोचा, एक ऊंट से इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं - देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy