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दूर की भी चिंता नहीं करती कि चीन में क्या हो रहा है, और पेकिंग में क्या हो रहा है, और वाशिंगटन में क्या हो रहा है। पड़ोसी के घर में क्या हो रहा है, यह स्त्री के लिए महत्वपूर्ण है। वाशिंगटन में क्या हो रहा है, यह बिलकुल बेकार बात है। हो रहा होगा! लेकिन पड़ोसी के घर में क्या हो रहा है, वह दीवार में कान लगा कर सुन रही है। इमीजिएट कांशसनेस है। दूर से मतलब नहीं है-अभी और यहां! क्षुद्र सी कोई बात हो रही होगी। क्योंकि जो वाशिंगटन में हो रहा, वह तो पड़ोसी के घर में नहीं हो रहा होगा। वियतनाम में जो हो रहा, वह तो पड़ोसी के घर में नहीं हो रहा होगा। पति-पत्नी की कोई कलह हो रही होगी, कुछ मां बेटे को डांट रही होगी, कुछ हो रहा होगा, क्षुद्र होगा। लेकिन वह निकट है-अभी। स्त्री के लिए क्षुद्रतम भी मूल्यवान है, अगर वह अभी है। और पुरुष के लिए बहुमूल्य से बहुमूल्य भी मूल्यवान नहीं है, अगर वह अभी है। वह दूर हो जितना, उतना उसके चित्त को फैलाव का मौका मिलता है। असल में, जितना दूर हो, उतना ही चिंतन की सुविधा है। जितना निकट हो, चिंतन की कोई जरूरत नहीं है। जितना पास हो, तो सोचना क्या है? जितना दूर हो, उतना सोचने के लिए उपाय है, तर्क के लिए उपाय है, योजनाएं बनाने के लिए उपाय है।
तो पुरुष दूर में बहुत उत्सुक है, दि डिस्टेंट। स्त्री निकट में बहुत उत्सुक है। और निकट में उत्सुक होना, सत्य की खोज के लिए, दूर में उत्सुक होने से ज्यादा मूल्यवान है। यह नहीं कह रहा हूं कि पड़ोसी के घर में क्या हो रहा है, इसमें उत्सुक बने रहें। निकट की उत्सुकता मूल्यवान है; क्योंकि निकट ही है जीवन। दूर तो सिवाय सपनों के और कल्पनाओं के कुछ भी नहीं है। निकट ही है जीवन। जितना निकट अस्तित्व की प्रतीति हो, उतनी ताजी और जिंदा होगी। दूर सब बासा और पुराना पड़ जाता है। धूल रह जाती है या भविष्य की कल्पनाएं और सपने रह जाते हैं।
पुरुष समय में जीता है। स्त्री स्थान में, स्पेस में जीती है। यह संयोग आपको खयाल में शायद न आया हो कि घर पुरुष ने नहीं बनाया, स्त्री ने बनाया। अगर पुरुष का वश चले, तो घर को कभी न बनने दे। क्योंकि घर के साथ पुरुष सदा ही बंधा हुआ अनुभव करता है निकट से। दूर की यात्रा कमजोर हो जाती है। पुरुष जन्मजात खानाबदोश है, आवारा है। जितना दूर भटक सके! इसलिए पुरुष के मन में भटकने की बड़ी तीव्र आकांक्षा है।
अब स्त्रियों की समझ में नहीं आता कि चांद पर जाकर क्या करिएगा! न वहां कोई शॉपिंग सेंटर है; शॉपिंग भी नहीं की जा सकती, चांद पर जा किसलिए रहे हैं? क्या आपको पता है कि आज अमरीका में जो एस्ट्रोनॉट्स हैं, अंतरिक्ष यात्री हैं, वे सर्वाधिक प्रतिष्ठित लोग हैं; लेकिन आपको पता भी नहीं होगा, खयाल में भी नहीं आया होगा कि एस्ट्रोनॉट्स की पत्नियों का डायवोर्स रेट डबल है आम नागरिक से अमरीका में। आम नागरिक जितना डायवोर्स करता है, उससे दुगुना डायवोर्स एस्ट्रोनॉट्स की पत्नियां कर रही हैं। क्यों? क्योंकि जो इतने दूर में उत्सुक हैं, वे पत्नियों में उत्सुक नहीं रह जाते। जिनकी उत्सुकता चांद में है...।
पत्नी को अखबार तक से पीड़ा होती है कि तुम अखबार पढ़ रहे हो उसकी मौजूदगी में! दूर चले गए। पत्नियां किताबों की दुश्मन हो जाती हैं। पत्नियां खेलों की दुश्मन हो जाती हैं कि पति ने उठाया बल्ला और चल पड़ा मैदान की तरफ! भारी पीड़ा होती है। निकट पत्नी मौजूद है और वह दूर। लेकिन चांद पर कोई चला जा रहा है! स्त्री उसमें उत्सुक नहीं रह जाएगी। और लौट कर वह आएगा भी, तो भी वह स्त्री में बहुत उत्सुक नहीं दिखाई देगा। इतने बड़ी दूर की उसने उत्सुकता पैदा कर ली है कि इतने निकट उसकी उत्सुकता नहीं होगी।
पुरुष सदा यात्रा पर है। घर स्त्रियों ने बनाए। इसलिए घरवाली वही कहलाती है, चाहे पैसा आप खर्च करते हों; उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। घर की मालकिन वही है। घर उसने बनाया; खूटी उसने गाड़ी। आप सिर्फ उसमें बंधे हुए अनुभव करते हैं।
मैं अभी एक व्यक्ति का आत्म-चरित पढ़ता हूं। उसने लिखा है कि मेरी बड़ी मुसीबत है। मैं तय नहीं कर पाता था, विवाह करूं या न करूं। क्योंकि विवाह करूं, तो बंध जाता हूं; फिर वहां से हिल नहीं सकता। विवाह न करूं, तो यात्रा जारी रह सकती है; लेकिन फिर ठहरने का कहीं उपाय नहीं, फिर कहीं विश्राम की कोई सुविधा नहीं।
पुरुष का बस चले तो भटकता रहे, भटकता रहे। जो खानाबदोश कौमें होती हैं, उस तरह भटकता रहे। इसलिए आपने कभी खयाल किया कि खानाबदोश कौमों की जो स्त्रियां हैं, वे करीब-करीब पुरुषों से भी ज्यादा पुरुष हो जाती हैं। बलूची स्त्रियों पर आपने खयाल किया? क्योंकि उनको पुरुष के साथ भटकना पड़ता है। और भटकने की जो अनिवार्यता है, उन पर भी फलित हो जाती है। क्योंकि स्त्री का स्वभाव भटकना नहीं है। अगर वह भटकेगी, तो उसको पुरुष जैसा स्वभाव निर्मित करना पड़ेगा। इसलिए बलूची स्त्री पुरुष से भी ज्यादा पुरुष हो जाती है। वह छुरा भोंक सकती है आपकी छाती में। उससे छेड़छाड़ नहीं कर सकते हैं आप। वह आपका हाथ पकड़ ले, तो छुड़ाना मुश्किल हो जाएगा।
अगर बलूची की स्त्री पुरुष जैसी हो जाती है, तो हमारा पुरुष स्त्री जैसा हो जाता है, यह खयाल रखना। क्योंकि घर में बंधा-बंधा उसको स्त्री के गुण के साथ जीना पड़ता है। इसलिए सर्वाधिक क्रोध उसे स्त्री पर आता है, क्योंकि वह उसकी जंजीर बन गई मालूम पड़ती है। यह प्रणय-बंधन में लोग बंधते हैं, वह शब्द बहुत अच्छा है। लोग निमंत्रण पत्रिकाएं छपवाते हैं कि मेरे पुत्र और पुत्री विवाह-बंधन में बंधने जा रहे हैं। बिलकुल ठीक जा रहे हैं! विवाह बंधन ही है पुरुष के लिए। वह वहां बंध कर, जड़ें जमा कर बैठ जाता है। वहीं से उसकी कुंठा शुरू हो जाती है।
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