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उस बात का, जो वह खोज रहा था! वह इतना आंदोलित हो उठा खुशी से कि अपने टब से नग्न ही दौड़ता हुआ सड़क पर आ गया और चिल्लाने लगा: यूरेका! यूरेका! मिल गया!
लोगों ने उसे पकड़ा और कहा कि पागल हो गए हो! वह भागा राजमहल की तरफ नग्न ही, क्योंकि राजा ने उसे एक सवाल दिया था हल करने को। वह हल नहीं कर पा रहा था। उसने सारी गणित की कोशिश कर ली थी, वह हल नहीं होता था। लेकिन टब में बैठा हुआ था, विश्राम कर रहा था, तब सोच भी नहीं रहा था; अचानक इंटयूटिव, जैसे बिजली कौंध गई, सवाल हल हो गया। आर्किमिडीज ने वह सवाल हल नहीं किया। वह सवाल जैसे भीतर से हल होकर उसके सामने आ गया। उसमें कोई तर्क की विधि उपयोग में नहीं लाई गई थी, सोच-विचार नहीं था; सीधे अस्तित्व में ही साक्षात हुआ था।
अब तक विज्ञान की विगत दो हजार वर्षों में जो भी खोज-बीन है, बड़े से बड़े वैज्ञानिक का कहना यही है कि जब मैं शिथिल होता है, रिलैक्स्ड होता हूं, तब न मालूम कैसे निष्कर्ष आ जाते हैं। कभी-कभी आपको भी अनुभव होता है। कोई नाम खो गया, स्मरण नहीं। आता है। बहुत कोशिश करते हैं, नहीं आता है। फिर छोड़ देते हैं, कुर्सी पर लेट जाते हैं, सिगरेट पीने लगते हैं, अखबार पढ़ने लगते हैं, या रेडियो खोल लेते हैं, या बगीचे में निकल कर जमीन खोदने लगते हैं। और अचानक जैसे भीतर से वह नाम, जो इतनी परेशानी से खोजते थे और याद नहीं आता था, भीतर से आ जाता है। यह बुद्धि का काम नहीं है। बुद्धि ने कोशिश कर ली थी; यह नहीं आ सका था।
अमरीका में एक आदमी था, कायसी। वह बेहोश हो जाता था। और किसी भी मरीज को उसके पास बिठा दिया जाए, तो वह बेहोशी में उसकी बीमारी का निदान कर देता था। न तो वह चिकित्सक था, न उसने कोई मेडिकल अध्ययन किया था। और होश में वह किसी तरह की बात नहीं कर सकता था दवा या इलाज के बाबत। लेकिन उसने अपने जीवन में चालीस हजार मरीजों का निदान किया, डायग्नोसिस की। बस वह आंख बंद करके ध्यानस्थ हो जाता था। मरीज को बिठा दें, फिर वह बोलना शुरू कर देता था कि इसे क्या बीमारी है। और न केवल यह, वह बोलना शुरू करता था, कौन सी दवा से यह आदमी ठीक होगा। उन दवाओं का उसे होश में पता भी नहीं था। और उसका निदान सदा ही सही निकला। होश में आने पर वह खुद भी कहता था कि मैं नहीं जानता कि इस दवा से फायदा होगा कि नहीं; मैंने इस दवा का नाम कभी सुना नहीं।
कई बार तो ऐसा हुआ कि...एक बार तो उसने एक दवा का नाम एक मरीज के लिए कहा। वह पूरे अमरीका में खोजी गई, वह दवा नहीं मिली। एक वर्ष बाद वह दवा मिल सकी, क्योंकि तब दवा कारखाने में बनाई जा रही थी, अभी बाजार में आई ही नहीं थी। और उसका नाम भी अभी तक तय नहीं हुआ था। और कायसी ने उसका नाम पहले ले दिया था-साल भर पहले। साल भर बाद वह दवा मिली और तभी वह मरीज ठीक हो सका।
एक दवा के लिए सारी दुनिया में खोज की गई, वह कहीं भी नहीं मिल सकी। तब सारे दुनिया के अखबारों में विज्ञापन दिए गए कि इस नाम की दवा दुनिया के किसी भी कोने में उपलब्ध हो, तो एक मरीज बिलकुल मरणासन्न है और कायसी कहता है, इसी दवा से ठीक हो सकेगा। स्वीडन से एक आदमी ने पत्र लिखा कि ऐसी दवा मौजूद नहीं है, लेकिन मेरे पिता ने छब्बीस साल पहले इस तरह की दवा पेटेंट कराई थी। यद्यपि कभी बनाई नहीं और बाजार में वह कभी गई नहीं; लेकिन फार्मूला मेरे पास है। वह फार्मूला मैं भेज सकता हूं, आप चाहें तो बना लें। वह दवा बनाई गई और वह मरीज ठीक हुआ।
कायसी को जो प्रतीति होती थी, वह इंटयूटिव है; यह स्त्रैण-चित्त का लक्षण है। सोच-विचार से नहीं, निर्विचार में निष्कर्ष का प्रकट हो जाना! समस्त ध्यान की प्रक्रियाएं इसी दिशा में ले जाती हैं।
लाओत्से कहता है, सोचोगे तो भटक जाओगे। मत सोचो, और निष्कर्ष आ जाएगा। सोचना छोड़ दो और प्रतीक्षा करो, और निष्कर्ष आ जाएगा। तुम सिर्फ प्रतीक्षा करो; प्रश्न तुम्हारे भीतर हो और तुम प्रतीक्षा करो; उत्तर मिल जाएगा। सोचो मत। क्योंकि जब तुम सोचोगे, तुम क्या पा सकोगे? तुम्हारी सामर्थ्य कितनी है? जैसे कोई एक लहर सोचने लगे जगत की समस्याओं को, क्या सोच पाएगी? अच्छा है कि सागर पर छोड़ दे और प्रतीक्षा करे कि सागर ही उत्तर दे दे।
स्त्रैण-चित्त का लाओत्से से प्रयोजन है, छोड़ दो तुम और अस्तित्व को ही उत्तर देने दो। तुम अपने को बीच में मत लाओ। क्योंकि तुम जो भी लाओगे, उसके गलत होने की संभावना है। अस्तित्व जो देगा, वह गलत नहीं होगा।
लकमान के संबंध में कहा जाता है कि वह-जैसा मैंने कहा कायसी के बाबत कि वह मरीज के पास बेहोश हो जाता था और दवा बता देता था-लुकमान पौधों के पास जाकर ध्यान लगा कर बैठ जाता था और कह देता था पौधों से कि तुम किस काम में, किस बीमारी के काम में आ सकते हो, वह तुम मुझे बता दो! लकमान ने कोई एक लाख पौधों के संबंध में वक्तव्य दिया है। कोई बड़ी प्रयोगशाला नहीं थी, जिसमें लुकमान जांच-पड़ताल कर सके।
आयुर्वेद के ग्रंथों को भी जब निर्माण किए गए, तब भी कोई बड़ी प्रयोगशालाएं नहीं थीं कि जिनके माध्यम से इतने बड़े निर्णय लिए जा सकें। लेकिन निर्णय आज भी सही हैं। वे निर्णय इंटयूटिव हैं। वे निर्णय किसी व्यक्ति के ध्यान में लिए गए निर्णय हैं। सर्पगंधा आयुर्वेद की एक पुरानी जड़ी है। कोई पांच हजार वर्षों से आयुर्वेद का साधक सर्पगंधा का उपयोग करता रहा है नींद लाने के लिए।
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