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एक छोटा सा कोड़ा भीतर परमात्मा को हटा सकता है। कोड़ा कोई बहुत बड़ी चीज नहीं है। लेकिन एक छोटे से कोड़े का खयाल परमात्मा को भीतर से हटा सकता है। यह कुछ ऐसा है कि एक छोटा सा तिनका आंख में पड़ जाए, तो सारी दुनिया अंधेरी हो जाती है। और अगर हिमालय दिखाई पड़ता था, तो एक छोटे से तिनके के आंख में पड़ जाने से हिमालय फिर दिखाई नहीं पड़ता। एक छोटे से तिनके की आड़ में पूरा पर्वत छिप जाता है। छोटा सा विचार भीतर से शून्य को खाली कर देता है। शून्य को भरने के लिए क्षुद्रतम चीज भी काफी है।
और हम सब भीतर भरे हुए हैं। वह हमारा भीतर भरा होना ही हमारे दरिद्र और भिखारी होने का कारण है। भीतर जो शून्य हो जाता है, वह सम्राट हो जाता है। सम्राट होने का एक ही उपाय है कि भीतर हम शून्य हो जाएं, खाली, रिक्त आकाश की तरह स्पेस रह जाए। और जितना बड़ा भीतर आकाश होता है, उतनी ही महान ऊर्जा का जन्म होता है। इस जगत में जो भी महान घटनाएं घटती हैं, वे शून्य से घटती हैं।
मैडम क्यूरी को कोई पूछता था कि तुमने-वह पहली महिला थी जिसने नोबल प्राइज पाई-तुम्हें नोबल प्राइज मिल सकी, तुमने इसके लिए क्या किया? तो क्यूरी ने कहा, जब तक मैंने कुछ किया, तब तक नोबल प्राइज तो दूर, मुझे कुछ भी नहीं मिल पाया। और जो नोबल प्राइज मुझे मिली है, वह मेरे करने से नहीं मिली; मेरे भीतर शून्य में से कुछ हुआ। मैडम क्यूरी को जिस गणित के आधार पर नोबल प्राइज मिली, वह उसने रात आधी नींद में उठ कर कागज पर लिखा था। वह वर्षों से मेहनत कर रही थी और सफल नहीं हो पाई थी। थक गई थी; उस सांझ उसने तय किया कि अब यह बात ही छोड़ देनी चाहिए। और आधी रात उसकी नींद टूट गई, वह नींद में उठी, उसने टेबल पर कुछ लिखा, वापस सो गई। सुबह उसे याद भी नहीं था कि वह रात कब उठी! उसने क्या लिखा! लेकिन सुबह जब टेबल पर उसने सवाल का हल पाया, तो चकित रह गई। वह नहीं कह पाई जीवन में कि यह मेरे द्वारा किया गया है। यह भीतर के शून्य से आया है।
आइंस्टीन ने मरने के पहले अपने वक्तव्यों में बार-बार कहा है कि जो भी मैंने जाना, वह जब तक मैंने जानने की कोशिश की, मैं नहीं जान पाया। जब मैंने कोशिश छोड़ दी, तो पता नहीं, भीतर के स्पेस से, भीतर के आकाश में वह आविर्भूत हुआ।
जिस व्यक्ति ने नोबल प्राइज पाई अणुओं की शृंखला के ऊपर, वह शृंखला उसे रात सपने में प्रकट हुई। उसे भरोसा भी नहीं आया कि सपने में अणुओं की शृंखला की कड़ी दिखाई पड़ सकती है। वह उसे सपने में ही दिखाई पड़ी। इस जगत में आज तक जो भी श्रेष्ठतम घटित हुआ है, वह शून्य से घटित हुआ है-चाहे बुद्ध में, चाहे महावीर में, चाहे लाओत्से में, या चाहे आइंस्टीन में।
निजिंस्की कहा करता था कि जब मैं नाचता हूं, जब तक मैं नाचता हूं, तब तक नाचना साधारण होता है, और जब मेरे भीतर का शून्य नृत्य को पकड़ लेता है, तब नाचना असाधारण हो जाता है। एक दिन घर लौट कर उसकी पत्नी ने निजिंस्की को कहा कि आज तुम ऐसे नाचे हो कि मैं रो रही हूं अपने मन में कि तुम ही एक अभागे आदमी हो कि तुमने भर निजिस्की का नाच नहीं देखा! आज तुम ऐसे नाचे हो कि तुम अकेले अभागे आदमी हो।
निजिंस्की ने कहा, तू गलती में है। मैंने भी देखा।
उसकी पत्नी ने कहा, मैं कैसे मानूं, तुम कैसे देख सकोगे?
निजिंस्की ने कहा कि जब तक मैं नाचता हूं, शुरू के थोड़े क्षणों में, तब तक मैं नहीं देख पाता। लेकिन फिर भीतर का शून्य नृत्य को पकड़ लेता है, तब तो मैं दूर खड़े होकर आब्जर्वर हो जाता हूं; फिर तो मैं देख पाता हूं।
निजिस्की दुनिया का अकेला नर्तक था, जिसको-ऐसा लोगों का खयाल है-ग्रेविटेशन का असर नहीं पड़ता था। जब वह नाचता था, तो अनेक बार हवा में उछल जाता था। और वह अकेला नर्तक था जो जमीन तक लौटने में बड़े आहिस्ते आता था, जैसे कोई पंख गिर रहा हो, कोई पक्षी का पंख गिर रहा हो। आदमी की तरह नहीं गिरता था, पक्षी के पंख की तरह! चकित थे लोग और निजिस्की से पूछते थे कि यह असंभव है बात, क्योंकि शरीर पर तो ग्रेविटेशन काम करता है। शरीर तो किसी का हो, जमीन खींचेगी।
निजिंस्की कहता था, जब तक मैं होता हूं, तब तक काम करता है। लेकिन जब शून्य पकड़ लेता है, तब ग्रेविटेशन का मुझे पता नहीं चलता। मैं जमीन पर ऐसे उतरने लगता हूं, जैसे हलका हो गया हूं, वेटलेस।
भीतर एक शून्य है। जब भी कोई महान नृत्य पैदा हुआ है, तो उससे; कोई महान काव्य पैदा हुआ है, तो उससे; कोई महान अंतर्दृष्टि उपलब्ध हुई है, तो उससे। विज्ञान जन्मता है उस शून्य से, धर्म जन्मता है उस शून्य से, कला पैदा होती है उस शून्य से।
लेकिन हम अहंकार से भरे लोग उस महान के निकट कभी भी नहीं पहुंच पाते, किसी भी द्वार से नहीं। क्योंकि हम कभी शून्य ही नहीं हो पाते। हम कभी आकाश में उड़ नहीं पाते, क्योंकि हम इतने पत्थर से भरे हैं अपने ही भीतर कि वह पत्थरों का वजन हमें जमीन पर कसे रखता है।
इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज