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अगर मौत का खयाल आ जाए, तो अहंकार को धक्का लग जाता है। धन का खयाल आ जाए, तो धक्का लग जाता है। वासना का खयाल आ जाए, तो धक्का लग जाता है। यश का खयाल आ जाए, तो धक्का लग जाता है। धारा टूट जाती है; ओपनिंग हो जाती है। वहां से भीतर प्रवेश किया जा सकता है।
लाओत्से जैसे लोग कैसे प्रवेश करें आपके भीतर ? क्योंकि न वे धन की बात करेंगे, न यश की बात करेंगे, न पद की बात करेंगे, न वासना की बात करेंगे। वे कोई बात न करेंगे। वे आपसे कह रहे हैं, तुम कुत्ते हो घास निर्मित। इनकी कोई सुनेगा? कनफ्यूशियस ने लौट कर अपने शिष्यों से क्या कहा, आपको पता है?
उसने कहा, उस बूढ़े के पास कोई मत जाना कभी। वह आदमी क्या है, सिंह मालूम पड़ता है, किसी को खा जाएगा। इतना कठोर आदमी मैंने नहीं देखा। मैं उसके सामने एकदम घबड़ा गया। उसने जो भी कहा, मुझे पता नहीं, क्या कहा। मैंने सुना भी ठीक से नहीं, मैं भी नहीं सका। उस आदमी की तरफ आंख उठाना बहुत कठिन है।
लाओत्से सदय भी नहीं है, कठोर भी नहीं है। लेकिन कनफ्यूशियस को कठोर लगा होगा। क्योंकि कनफ्यूशियस जैसा महा विचारक, प्रतिष्ठा थी उसकी लाओत्से से ज्यादा लाओत्से को कम लोग जानते थे, कनफ्यूशियस को ज्यादा और ढाई हजार साल में लाओत्से
नहीं चीन के मन को निर्मित किया, कनफ्यूशियस ने निर्मित किया। तो कनफ्यूशियस ज्यादा प्रतिष्ठित था। सम्राट उसको सम्मान देते थे। सम्राट उठ कर उसको बैठने को कहते थे। और एक बूढ़े फकीर ने उससे कहा, बैठ भी जा, कमरे को तेरी कोई फिक्र नहीं है। उसका मन और बंद हो गया होगा।
संत सदय नहीं हैं। संत इतने एकात्म को उपलब्ध हो गए हैं अस्तित्व से कि अस्तित्व ही उनके भीतर से बोलता, अस्तित्व ही उनके भीतर से व्यवहार करता, अस्तित्व ही उनके भीतर से चलता उठता है; संत नहीं। यह स्मरण रहे, तो लाओत्से का यह बहुत अजीब सा दिखने वाला सूत्र आसान हो जाएगा। और काश, हम संतों को इस भांति देख सकें, तो संतों के संबंध में हमारी सारी दृष्टि और हो जाएगी। हम और ढंग से देख पाएंगे, सोच पाएंगे।
लेकिन संत के पास भी हम अपनी दृष्टि लेकर जाते हैं। हम संत को समझने नहीं जाते, हम अपनी दृष्टि का आंकलन करने जाते हैं। यदि हम सुनते भी हैं संत को, तो हम इस हिसाब से सुनते हैं कि कौन सी बात इसमें सही है। सही का मतलब क्या होता है? आपसे कौन सी बात मेल खाती है। सत्य का क्या मतलब होता है? जिसको आप सत्य मानते हैं, वह अगर मेल खाता हो, तो आदमी ठीक है। अगर वह मेल न खाता हो, तो आदमी गलत है। आप अपने को मापदंड बना कर घूम रहे हैं। आपका संत से मिलना भी नहीं सकेगा कभी।
लाओत्से जिस संत की बात कर रहा है, वह आपको न मिलेगा। हां, कोई रेवड़ी बांटने वाला संत आपको मिल सकता है। आपकी जीभ पर एक रेवड़ी रख देगा, बहुत खुशी होगी। वह घास का जो कुत्ता है, बहुत प्रसन्न होगा; और कहेगा, बिलकुल ठीक! सिर पर पानी छिड़क देगा और कहेगा कि आशीर्वाद ! जा, सभी में सफलता मिलेगी ! तंत्र-मंत्र दे देगा कुछ, अदालत में मुकदमा जीतो, हारा हुआ प्रेम बाजी बदल दो, कहीं किसी लाटरी में नंबर लगा दो! वे आदमी आपको मिल जाएंगे। लाओत्से का संत आपको नहीं मिलेगा।
नहीं मिलेगा इसलिए कि आप उसको तभी खोज सकते हैं, जब आप अपने को घास का कुत्ता जानने को राजी हों। तभी आप उसको खोज सकते हैं। और जो आदमी अपने को घास का कुत्ता जानने को राजी हो जाए, उस आदमी को उसके दरवाजे पर वैसा संत आकर मिल जाएगा, उसे जाने की भी शायद जरूरत न पड़े। क्योंकि जैसी हमारी तैयारी है, वैसे ही अस्तित्व प्रकट करने लगता है अपने राज, अपने रहस्य ! हमारी तैयारी पर सब कुछ निर्भर होता है।
हमारी तैयारी का सब से अनिवार्य अंग जो है, उसके लिए लाओत्से इशारा कर रहा है। यह इशारा केवल मेटाफिजिकल नहीं है, यह कोई दार्शनिक तत्वज्ञ मात्र की बात नहीं है। लाओत्से इशारा इसलिए कर रहा है, ताकि हम समझ सकें कि अगर संत को खोजना हो, तो हमें क्या करना पड़ेगा। हमें अपने संबंध में साफ हो जाना पड़ेगा कि हम क्या हैं। यदि स्पष्ट मुझे बोध हो जाए कि मैं क्या हूं, तो वह जो गांठ हमारे ऊपर लदी हुई है, उसके टूट जाने में जरा भी देर नहीं लगती, उसके गिर जाने में भी जरा देर नहीं लगती। लेकिन हमें स्मरण ही नहीं होता ।
अभी एक मां मेरे पास आई हुई थी अपनी बेटी को लेकर, दूर न्यूयार्क से। क्योंकि मां और बेटी में बड़ी कलह थी । और मां का खयाल है कि अपनी बेटी को बहुत प्रेम करती है। दो महीने पहले भी आई थी। और तब उसने कहा कि मैं अपने बच्चों को इतना प्रेम करती हूं कि मैं उनके लिए जान दे सकती हूं। मैंने उससे कहा कि तू फिर एक दफा सोच, क्योंकि यह स्वाभाविक नहीं है। उसने कहा, मैं अपनी लड़कियों को इतना प्रेम-तीन लड़कियां ही हैं उसकी इतना प्रेम करती हूं कि आप भरोसा नहीं कर सकते। मैंने उससे कहा कि तू फिर एक दफा सोचना ।
तो वह रोने लगी, चीखने लगी, छाती पीटने लगी। और उसने मुझसे कहा कि आप बहुत कठोर हैं, आप अपने शब्द वापस ले लें, मैं अपने बच्चों को सच में ही प्रेम करती हूं।
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