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बात नहीं है! और किसी के चरणों में सचमुच सिर रख देना, पूरी तरह अपने को छोड़ देना, उसकी ही सामर्थ्य की बात है जो पूरी तरह अपना मालिक हो। छोड़ोगे कैसे? सिर पैर पर रख देने से थोड़े ही रख जाता है! इतनी मालकियत भीतर हो कि कह पाएं कि ठीक, छोड़ते हैं पूरा। लेकिन छोड़ेगा कौन? आप छोड़ सकते हैं? जो क्रोध नहीं छोड़ सकता, जो सिगरेट पीना नहीं छोड़ सकता, वह पूरा छोड़ देगा स्वयं को?
एक आदमी सिगरेट पीना छोड़ता है, तो वह कहता है, हम बड़ा पुरुषार्थ कर रहे हैं। वह भी छूटती नहीं। तो पूरा अपने को समर्पित करना! वह छोटा पुरुषार्थ नहीं है; बड़े से बड़ा पुरुषार्थ है। अंतिम पुरुषार्थ है। उसके आगे और कोई पुरुषार्थ नहीं है।
एक मित्र ने पूछा है कि आप कहते हैं कि कोई चीज पूर्ण नहीं हो सकती। तो फिर शून्य की पूर्णता भी कैसे मिलेगी?
शून्य की पूर्णता आपको अगर पानी होती, तब तो वह भी न मिल सकती। वह है! वह है! आप सिर्फ भरने का उपाय न करें, आप अचानक पाएंगे कि आप शून्य हैं। पूर्णता तो इस जगत में कोई भी नहीं हो सकती। आदमी के किए कुछ भी नहीं हो सकती। मुल्ला नसरुद्दीन पर एक दफा सुलतान, जिसके घर वह काम करता था, नाराज हो गया। और उसने कहा, यू आर ए परफेक्ट डोप; तुम बिलकुल पूर्ण गधे हो।
मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा, डोंट फ्लैटर मी, नोबडी इज़ परफेक्ट! खुशामद मत करो, कोई है ही नहीं पूर्ण। पूर्ण गधा भी कैसे हो सकता ह! खुशामद मत करो मेरी बेकार, कोई पर्ण है ही नहीं।
पूर्णता तो कोई भी नहीं हो सकती। लेकिन शून्यता अगर आपको लानी होती, तो वह भी पूर्ण नहीं हो सकती थी। लेकिन शून्यता आपका स्वभाव है। वह आपको लानी नहीं है, वह है। हां, आप चाहें तो इतना कर सकते हैं कि जो है, उसको ढांक सकते हैं, छिपा सकते हैं, भूल सकते हैं। फारगेटफुलनेस हो सकती है, बस। मिटा तो नहीं सकते, भूल सकते हैं। विस्मरण कर सकते हैं। शून्यता की पूर्णता आपको पानी नहीं है। आपको सिर्फ पूर्ण होने के सब प्रयास छोड़ देने हैं। और आप पाएंगे कि शून्य हो गए।
उन्हीं मित्र ने पूछा है कि घड़ा शून्य होगा, तो घड़ा भी मिट जाएगा न! अब इसमें समझने जैसा है कि लाओत्से किसको घड़ा कहता है और आप किसको घड़ा कहते हैं। हम दोनों की भाषा में फर्क है। हम कहते हैं मिट्टी की दीवार को घड़ा। और जब हम बाजार से खरीद कर लाते हैं, तो हम वह जो चार पैसे चुका कर आते हैं, वह जो मिट्टी की दीवार कुम्हार ने बनाई है, उसके ही चुका कर आते हैं। घड़े का हमारे लिए मतलब है, वह जो मिट्टी की दीवार है। और लाओत्से का मतलब है, वह जो मिट्टी की दीवार के भीतर खालीपन है, वह है घड़ा। और लाओत्से कहता है कि हम तो वह घड़ा खरीद कर लाते हैं। यह मिट्टी की दीवार तो केवल सीमा है; वह जो भीतर शून्य है, वह है घड़ा। घड़ा तो वही है। उस शून्य की यह सिर्फ सीमा-रेखा है। और यह सीमा-रेखा भी इसीलिए रखनी पड़ती है हमें, क्योंकि हमें घड़े को भरना है। अगर खाली ही रखना हो, तो इस सीमा-रेखा की कोई जरूरत नहीं है।
खयाल करें, इस सीमा-रेखा को हमें क्यों बनाना पड़ता है? यह कुम्हार इस शून्य के चारों तरफ यह मिट्टी का एक गोल घेरा क्यों बनाता है? ताकि हम कुछ भर सकें। क्योंकि शून्य में तो कुछ न भरा जा सकेगा। तो शून्य को चारों तरफ से घेर देते हैं पदार्थ से, ताकि फिर भरा जाए। भरा तो जाएगा शून्य में ही, लेकिन फिर उसमें तलहटी बनानी पड़ेगी। नहीं तो वह गिर जाएगा। इसलिए घड़े की दीवार बनाते हैं, क्योंकि भरना है।
लेकिन अगर खाली ही करना है, तो आप बाजार में घड़ा खरीदने जाएंगे? क्योंकि हमें घड़ा खाली करना है! खाली घड़ा कोई खरीदने जाएगा? खाली घड़े को कोई सम्हाल कर रखेगा?
अगर भरना नहीं है, तो दीवार बेकार हो गई। उसका कोई प्रयोजन, उसका प्रयोजन ही भरने के लिए था। तो जैसे ही कोई व्यक्ति सूना रहने के लिए राजी हो गया, रिक्त रहने के लिए राजी हो गया, शरीर की जो दीवार है, वह छूट जाती है। उसी को हम पुनः देह का निर्मित न होना कहते हैं। इसे ऐसा समझ लें कि हमारे भीतर एक शून्य है, जो हमारी आत्मा है। और हमारा शरीर एक घड़ा है-दीवार मिट्टी की। जब तक हमें भरना है अपने को, किन्हीं इच्छाओं को पूरा करना है, कहीं पहुंचना है, कुछ पाना है, कोई यात्रा करनी है, कोई लक्ष्य है, कोई वासना है, कोई इच्छा है, तब तक बार-बार कुम्हार हमारे घड़े को बनाता चला जाएगा।
बुद्ध को जिस दिन ज्ञान हुआ, बुद्ध ने कहा, हे मेरे मन के कुम्हार, अब तुझे घड़ा बनाने की जरूरत न पड़ेगी। यह आखिरी बार। और तुझे धन्यवाद देता हूं, तूने मेरे लिए बहुत घड़े बनाए। हे राज, अब तुझे मेरे लिए घर न बनाना पड़ेगा। क्योंकि अब तो रहने वाले की मर्जी ही रहने की न रही। अब मेरे लिए किसी घर की कोई जरूरत न पड़ेगी।
हर बार, हमारी वासना जो भरने की है, उसी की वजह से हम शरीर निर्मित करते हैं। और जिस दिन हम शून्य होने को राजी हो जाएंगे, उसी दिन फिर इस शरीर को बनाने की कोई जरूरत न रह जाएगी।
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