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________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free यह समझना बहुत कठिन होगा मन को कि मोक्ष को रोकना भी हमारा बहाना है। निर्वाण को न पाना भी हमारी तरकीब है। कोई पाप नहीं रोक रहा है। सिर्फ हम नहीं चाहते; और इसलिए हम एक्सप्लेनेशंस खोजते हैं कि किन-किन वजह से रुक रहा है मोक्ष। लाओत्से की दृष्टि में समय का कोई व्यवधान नहीं है। अभी हो जाएं खाली; यहीं खोल दें मुट्ठी। लाओत्से यह भी कहता है कि भराव कभी भी शांत नहीं हो सकता। आधा घड़ा भरा है, आवाज होती है; पौना घड़ा भरा है, आवाज होती है। लाओत्से कहता है, कितना ही घड़ा भरा हो, आवाज होती ही रहेगी। सिर्फ खाली घड़ा शांत हो जाता है। क्यों? आप कहेंगे, कभी तो ऐसा हो सकता है कि घड़ा बिलकुल ही भरा हो और आवाज न हो। लेकिन लाओत्से नहीं मानता। लाओत्से कहता है कि घड़ा भरा हो, तो एक बात तय हो गई कि दो चीजें हैं: घड़ा है, और जो चीज भरी है। और जहां द्वैत है, वहां पूर्ण शांति नहीं हो सकती। इसको ठीक से समझ लें। जहां घड़े में कुछ भरा है, वहां घड़ा है और कुछ भरा है। तो वहां द्वैत कायम रहेगा। इसलिए पूर्णता को उत्सुक आदमी द्वैत से भरा रहेगा, द्वंद्व से भरा रहेगा, कांफ्लिक्ट जारी रहेगी। सिर्फ शून्य में खड़ा हुआ आदमी कांफ्लिक्ट के बाहर होगा, क्योंकि दूसरा बचता ही नहीं है। घड़ा खाली है, आवाज कौन करेगा? कोई टकराने को भी नहीं है। घड़े में कुछ है ही नहीं; घड़ा अकेला है। ध्यान रहे, अद्वैत में ही शांति संभव है, क्योंकि टकराने को कोई नहीं है। जहां दो हैं, वहां टकराव होता ही रहेगा। अब यह बहुत मजे की बात है और इसकी अपनी तर्क-सरणी है। जब भी आप अपने को किसी चीज से भरेंगे, तो पक्का आप समझ लेना कि वह आप न होंगे जिससे आप भरेंगे, वह कुछ और होगा। वह चाहे धन हो, यश हो, ज्ञान हो, त्याग हो, भगवान हो, कुछ भी हो। ध्यान रहे, जिससे भी आप अपने को भरेंगे, वह आप न होंगे। कुछ और होगा। समथिंग एल्स। और दूसरे से भर कर कहीं शांत हो सकते हैं? अब यह तो पक्का समझ में आता है न कि घड़ा घड़े से ही कैसे अपने को भरेगा! पानी से भरेगा, तेल से भरेगा, दूध से भरेगा, जहर से, अमृत से भर लेगा; बाकी भरेगा किसी और से। अब घड़ा घड़े से ही कैसे अपने को भरेगा? घड़े को अगर घड़ा ही होना है, तो शून्य होना ही उसका उपाय है। अगर घड़े को सिर्फ घड़े से ही भरा होना है, तो शून्य होना ही उसकी विधि है। नहीं तो घड़ा किसी और से भर जाएगा। वह नाम कुछ भी रख लेगा; नाम रखने से अंतर नहीं पड़ता। हमको धोखा जरूर होता है कि नाम रख लेने से अंतर पड़ जाता है। लिंकन के पास एक बहुत बड़ा धर्मशास्त्री मिलने गया था। तो वह बड़ी-बड़ी बातें कर रहा था-ईश्वर, स्वर्ग, नर्क! लिंकन ने कहा कि मैं यह पूछना चाहता हूं कि ये सिर्फ नाम ही तो नहीं हैं? उसने कहा कि नहीं, नाम नहीं हैं। लिंकन ने कहा, इसे छोड़ें। मैं एक बात पूर्वी, गाय के कितने पैर होते हैं? उसने कहा कि यह भी कोई पूछने की बात है! कहां मैं मोक्ष, परमात्मा, स्वर्ग-नर्क की बात कर रहा हूं और आप गाय के पैर पूछते हैं? फिर भी लिंकन ने कहा, कृपा करके। उसने कहा कि यह कोई बात है, गाय के चार पैर होते हैं। लिंकन ने कहा, अगर हम गाय की पूंछ को भी एक पैर कहें, पैर मान लें, तो गाय के कितने पैर होते हैं? उसने कहा कि फिर पांच पैर होते हैं। लिंकन ने कहा, यहीं तुम्हारी गलती है। तुम चाहे पूंछ को पैर कहो, तो भी पूंछ पैर नहीं हो जाती। तुम्हारे कहने से क्या होगा? तुम्हारे कहने से क्या पूंछ पैर हो जाएगी? तुम पूंछ भला कहो, तख्ती लगा दो, फिर भी पूंछ पैर नहीं हो जाती। पूंछ पूंछ ही होती है। तुम्हारे लेबल से कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि पैर सिर्फ नाम नहीं है, पैर कुछ काम है। वह पूंछ नहीं कर सकती। तुम नाम कितना ही दे दो उसको। हम नामों के भ्रम में बहुत रहते हैं। आदमी के बड़े से बड़े भ्रम जो हैं, वे लेबलिंग और नाम के हैं। सूफियों की एक कहानी है कि एक गिलहरी एक वृक्ष के नीचे बैठी है और एक लोमड़ी गुजरती है। तो वह लोमड़ी गिलहरी से कहती है कि नासमझ, मुझे देख कर भी तू भाग नहीं रही है! तुझे पता है, मैं लोमड? हूं, तुझे अभी दो टुकड़े कर सकती हूं। गिलहरी ने कहा कि कोई प्रमाणपत्र है? हैव यू गॉट एनी सर्टिफिकेट? तुम लोमड़ी हो, इसका कोई लिखित प्रमाणपत्र है? लोमड़ी बड़ी हैरानी में पड़ी, क्योंकि ऐसा गिलहरियों ने कभी पूछा ही नहीं था। यह बड़ी अनहोनी घटना थी। गिलहरी भाग जाती थी लोमड़ी को देख कर। किसी गिलहरी ने कभी कोई यह जुर्रत ही नहीं की थी कि लोमड़ी से पूछे कि कोई प्रमाणपत्र है तुम्हारे पास? यह कैसे हम माने कि तुम लोमड़ी हो, कुछ लिखित है? लोमड़ी को पसीना आ गया, यह कभी ऐसा इतिहास में नहीं हुआ था। उसने कहा, तू ठहर, मैं अभी प्रमाणपत्र लेकर आती है। वह सिंह के पास गई और उसने कहा कि कृपा करो एक लिखित प्रमाणपत्र दो। इज्जत बेइज्जत हुई जाती है। एक साधारण सी गिलहरी मुझसे-यह उसके मन में चल रहा है-इज्जत बेइज्जत हुई जाती है। एक साधारण सी गिलहरी। यह उसने सिंह से नहीं कहा। इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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