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________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free बोधिधर्म ने कहा कि तुम सम्राट की बात कर रहे हो! सम्राट की वजह से, कि यह बेचारा इतनी दूर आया, मैंने इतना भी जवाब दिया। अन्यथा इतना जवाब भी गलत था। वह भी नहीं है मेरे भीतर जो कह सके कि मुझे पता नहीं कौन है। यह तो सिर्फ उसकी वजह से कि वह और ही हैरान हो जाएगा इसलिए उसको मैंने कह दिया। बट डोंट मिसअंडरस्टैंड मी, बोधिधर्म ने कहा, मुझे गलत मत समझना। इतना भी मेरे भीतर नहीं है कोई जो कहे कि मुझे पता नहीं है। यह सिर्फ सम्राट इतनी दूर से चल कर आया था, वर्षों से प्रतीक्षा कर रहा था मेरी। जैसे कोई बच्चा आ जाए और हम उसे खिलौना पकड़ा दें, ऐसा मैंने उसे एक खिलौना दिया है। जब तक विचार चल रहे हैं चारों तरफ, तब तक जानना कि आप भी एक विचार हो-यू आर ए थॉट। जब कुछ भी न रह जाए, यह पता करने वाला भी न रह जाए, कुछ रह ही न जाए...। और जरा भी कठिनाई नहीं है, जरा भी कठिनाई नहीं है। यह हमें दिक्कत की बात मालूम पड़ती है। और बुद्ध को समझने में इस देश में जो बड़ी से बड़ी कठिनाई हुई, वह यही थी। और चीन में बुद्ध को समझने में आसानी पड़ी, उसका कारण यह लाओत्से था, और कोई नहीं। चीन में बुद्ध समझे जा सके लाओत्से की वजह से। लाओत्से बुद्ध के पहले वह सब कह चुका था। तो जब बुद्ध की बात पहुंची चीन में और बुद्ध का शब्द लोगों ने सुना कि आत्मा भी नहीं है, तो लोग समझ पाए। लाओत्से की एक भूमिका थी, जो कह रहा था, कुछ भी नहीं है। भारत में बड़ी कठिनाई हो गई। हम यह बात मानने को तैयार हैं, विचार समाप्त हो जाए, बहुत अच्छा; लेकिन मैं तो रहूं। मोक्ष मिले, बिलकुल ठीक; लेकिन मैं रहूं। मुझे तो बचना ही चाहिए। तो जब बुद्ध ने इस देश में कहा, अनत्ता, अनात्मा। कहा कि नहीं, आत्मा भी नहीं है, क्योंकि यह भी एक विचार है। इसे समझें थोड़ा। मैं आत्मा हूं, यह भी एक विचार है। और निश्चित ही वह जगह है, जहां यह विचार भी नहीं होता। और वहीं आत्मा है। यह उलटा दिखता है। यह विचार भी जहां नहीं होता कि मैं आत्मा हूं, वहीं आत्मा है। लेकिन वह तो प्रकट हो जाएगी। आप काटते चले जाएं, काटते चले जाएं, आखिर में खुद कट जाएं। करीब-करीब ऐसा करना पड़ता है जैसे दीया जलता है, आग जलती है, लौ जलती है। लौ पहले तेल को जलाती रहती है। फिर तेल चुक जाता है। फिर लौ बाती को जलाने लगती है। फिर बाती चुक जाती है। फिर पता है, लौ का क्या होता है? लौ खो जाती है। लौ पहले तेल को जला देती है, फिर बाती को जला देती है, फिर स्वयं को जला लेती है। विचार को छोड़ दें, विचार काट डालें। फिर स्वयं को भी छोड़ दें। फिर विचारों को काट डाला, स्वयं को भी छोड़ दिया, यह भी छोड़ दें। तब कुछ नहीं बचता। एक निर्विकार भाव-अवस्था, एक निर्विकार अस्तित्व, एक मौन-शांत सत्ता, एक्झिस्टेंस शेष रह जाता है, जहां मैं का भंवर नहीं बनता। पानी में भंवर बनते देखे होंगे। जोर चक्कर से भंवर बनता है। और भंवर की एक खूबी होती है, आप कुछ भी डाल दो तो वह भंवर उसको फौरन खींच कर घुमाने लगता है। मैं एक भंवर है। जिसमें आप कुछ भी डालें, वह किसी भी चीज को पकड़ कर घुमाने लगेगा। इस निर्विचार, निरहंकार स्थिति में कोई भंवर नहीं रह जाता, कोई घूमने की स्थिति नहीं रह जाती। और तब, तब ताओ का अनुभव है, तब धर्म का, या बुद्ध जिसे धम्म कहते थे, नियम का, ऋषि जिसे ऋत कहते रहे हैं, महावीर जिसे कैवल्य कहते हैं। कैवल्य का अर्थ है, कुछ भी न बचा, केवल होना ही बचा; कोई उपाधि न रही, कोई विशेषण न रहा; सिर्फ अस्तित्व रह गया। मात्र होना, जस्ट बीइंग! जैसे कोई एक गहन गढ में झांके, या जैसे कोई खुले आकाश में झांके-न कोई बादल, न कोई तारे, खाली आकाश रह गया। ऐसा ही जब भीतर रह जाता है, झांकने वाला भी नहीं रह जाता, सिर्फ खालीपन रह जाता है, तब पता चलता है उसका, उस पथ का, जिस पर विचरण संभव नहीं है, उस पथ का, जो अविकारी है। और तब पता चलता है उस सत्य का, जिसे कोई नाम नहीं दिया जा सकता, जो कालजयी है, जो कालातीत है, जो सदा एकरस है, जो केवल स्वयं है। जीसस के एक भक्त ने, तरतूलियन ने...तरतूलियन से कोई पूछता है कि जीसस के संबंध में कुछ समझाओ, कुछ हमें उदाहरण दो जिससे पता चले कि जीसस कैसे थे। तो तरतूलियन कहता है कि मत मुझसे गलती करवाओ। जीसस बस बिलकुल अपने ही जैसे थे-जस्ट लाइक हिमसेल्फ। बस अपने ही जैसे; और किसी से कोई तुलना नहीं हो सकती। क्या होगा वहां? उस ताओ की दशा में, उस ऋत में डूब कर क्या होगा? कैसे होंगे हम? क्या होगा हमारा रूप? क्या होगी आकृति? क्या होगा नाम? कोई बचेगा जानने वाला? नहीं बचेगा? क्या होगा? कोई तुलना नहीं हो सकती, कुछ कहा भी नहीं जा सकता। इशारे सब नकारात्मक हैं। इतना कहा जा सकता है, आप नहीं होंगे। आप बिलकुल नहीं होंगे। और जो होगा, उसे आपने अपने भीतर कभी नहीं जाना है। इतना कहा जा सकता है, कोई विचार न होगा, यह विचार भी नहीं कि मैं निर्विचार हं। फिर भी होगी चेतना, लेकिन ऐसी, जिसे आपने कभी नहीं जानी है। और उसके पहले मन सब तरह की वंचनाएं खड़ी करने में समर्थ है। इसलिए सजग रहना जरूरी है। मन इतना कुशल है, इतना सूक्ष्म रूप से चालाक और कुशल है कि सब धोखे खड़े करने में समर्थ है। कामवासना से भरे चित्त को ब्रह्मचर्य का धोखा दे सकता है। परिपूर्ण स्वयं के प्रति अज्ञानी को आत्मज्ञानी का धोखा दे सकता है। जिसे कुछ भी पता नहीं है, उसे खयाल दिला सकता है कि उसे इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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