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बाहुबलि का दृष्टांत
श्री उपदेश माला गाथा २५
दिक्चक्रं चलितं भयाज्जलनिधिर्जातो महाव्याकुलो, पाताले चकितो भुजङ्गमपतिः क्षोणीधराः कम्पिताः । भ्रान्ता सुपृथिवी महाविषधराः क्ष्वेडं वमत्युत्कटम्, वृत्तं सर्वमनेकधा दलपतेरेवं चमूनिर्गमे ॥१८॥
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अर्थात् - चक्रवर्ती की सेना के चलने से दिग्मंडल काँपने लगा, भय से समुद्र अत्यन्त क्षुब्ध हो गया, पाताललोक में शेषनाग चकित हो गया, पर्वत कंपायमान हो गये, पृथ्वी घूमने लगी, महाविषधर सर्प उत्कट विष का वमन करने लगे, इस प्रकार की अनेक क्रिया सेना के चलने से होने लगी || १८ || अठारह करोड़ अश्वारोही सेना एकत्रित कर भरत महाराज अपने हस्तिरत्न पर बैठकर बाहुबलि को जीतने के लिए चले। कुछ दिनों में वह बहली देश पहुँचे। बाहुबलि ने भी भरत को आया जानकर अपनी विशाल सेना एकत्रित की और अपने तीन लाख पुत्रों के साथ सोमयश नाम के अपने पुत्र को सेनापति बनाकर विशाल सेना के साथ चला। दोनों सेना आमने-सामने मिली। दोनों सेनाओं की चौरासी हजार रणभेरियाँ बज उठीं। भेरी आदि वाद्यों की आवाज के कोलाहल से एक दूसरे की आवाज नहीं सुनाई दे रही थी। योद्धाओं से रणभूमि विकट दीखने लगी। दोनों ओर के योद्धा परस्पर घोर संग्राम करने लगे। इनमें कई सैनिक सिंह का मानमर्दन करने वाले थें, कुछ योद्धा हाथियों के द्वारा युद्ध करने में कुशल थें, कितने ही योद्धा ऐसे थें, जिनके कीर्तिपटह चारों ओर बज चुके थें। योद्धाओं के शौर्योत्तेजक शब्दों से सारा रणक्षेत्र शब्दमय हो (गूंज) उठा।
एके वै हन्यमाना रणभुवि सुभटा जीवशेषाः पतन्ति, ह्येके मूर्च्छा प्रपन्नाः स्युरपि च पुनरुन्मूर्च्छिता वै पतन्ति । मुञ्चन्त्येकेऽट्टहासान्निजपतिकृतसम्मानमाद्यं प्रसादं,
स्मृत्वा धावन्ति मार्गो जितसमरभयाः प्रौढिवन्तो हि भक्त्या ॥ १९ ॥ अर्थात् - कई सुभट रणभूमि में हताहत होने से जीवशेष होकर लुढ़क
गये हैं; कोई मूर्छित हो गये हैं, कितने ही योद्धा होश में आकर पुनः मूर्छित हो जाते हैं, कई सुभट खिलखिलाकर हंस रहे हैं, और कई योद्धा अपने स्वामी द्वारा दिये गये सम्मान और पूर्वप्रदत्त प्रसाद को याद करके युद्ध के भय को छोड़कर भक्ति से ढीठ बनकर युद्ध के मार्ग में भागदौड़ कर रहे हैं ॥१९॥
इस तरह इस घोर युद्ध में कितने ही योद्धा हाथियों के झुंड को पैरों से पकड़कर आकाश में घुमाने लगे। कई उछलते हुए योद्धाओ को पकड़कर भूमि पर
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