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________________ विद्यादाता चाण्डाल की कथा श्री उपदेश माला गाथा २६६ बुलाकर आम के चोर का पता लगाने और उसे पकड़ लाने का आदेश दिया। अभयकुमार ने राजाज्ञा स्वीकारकर मन ही मन युक्ति सोची और एक चौराहे पर जा पहुँचा। वहाँ नट का खेल देखने के लिए दर्शकों की भीड़ जमा हो रही थी। अभी खेल शुरू होने में देर थी। अतः अभयकुमार ने एकत्रित जनों से कहा"भाईयो! मेरी एक बात सुनो! नाटक शुरू होने से पहले मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ। सभी लोग चौकन्ने होकर कहानी सुनने लगे। अभयकुमार ने कहा"पुण्यपुर नाम का एक नगर था। वहाँ गोवर्धन नामक एक शेठ रहता था। सुंदरी नाम की उसकी एक पुत्री थी। रूप और यौवन में वह अपने नाम को सार्थक कर रही थी। योग्य वर की प्राप्ति के लिए वह हमेशा किसी बगीचे से चुपके-चुपके फूल तोड़कर कामदेव यक्ष की पूजा किया करती थी। एक दिन उस बगीचे के माली ने उसे फूल तोड़ते हुए देख लिया। रंगे हाथों उसने सुंदरी को पकड़कर डांटते हुए कहा-"तूं ने बिना पूछे फूल तोड़कर चोरी की है। अब इसकी भयंकर सजा तुझे मिलेगी। परंतु अगर तूं मेरी एक बात मान लेगी तो मैं तुझे छोड दूंगा; अन्यथा अभी राजा के सामने हाजिर करूँगा।" सुंदरी बोली- "बोलो, मित्र! तुम्हारी क्या शर्त है?'' माली ने कहा- "मेरे साथ काम-क्रीड़ा करके मेरी इच्छा पूर्ण कर दे।" सुंदरी बोली-"अभी तक मैं कुमारिका हूँ| आजसे पांचवें दिन मेरी शादी होने वाली है। शादी करते ही पहले दिन अपने पति के पास जाने से पहले मैं तुम्हारे पास आने का वचन देती हूँ। अब तो मानोगे?'' माली ने उसकी बात. मान ली। सुंदरी वचनबद्ध होकर वहाँ से अपने घर चली आयी। पांचवें दिन उसकी शादी हो गयी। जब वह सुहागरात के समय पति के पास पहुँची तो उसने माली को दिये गये वचन का सारा हाल अपने पति को बताया और माली के पास जाने की आज्ञा मांगी। पति ने उसे सत्यवादी समझकर जाने की आज्ञा दे दी। अतः कामोत्तेजक तथा शृंगारप्रसाधन की सर्वसामग्री लेकर वस्त्राभूषणों से सुसज्जित होकर वह आधी रात को ही वहाँ से चल पड़ी। गाँव से बाहर निकलते ही चोरों का सामना हुआ। वे उसके वस्त्राभूषण लूँटने को तैयार हुए तब सुंदरी ने कहा- "मैं माली के पास जाकर वापिस लौटते समय तुम्हें सारे वस्त्राभूषण उतार कर दे दूंगी। अभी तो मुझे जाने दो।' चोरों ने भी उसे सत्यवादी समझकर जाने दिया। आगे जाते हुए रास्ते में एक राक्षस मिला। वह उसे खाने को उद्यत हुआ। सुंदरी ने उसे भी वचनबद्धता की सारी बातें कहकर वापिस लौटते समय आने का वचन देकर उससे पिंड छुड़ाया। इस प्रकार संकटों को पार करती हुई बड़ी मुश्किल से वह बाग में माली के पास पहुँची। 1. इस में राक्षस पहले और चोर बाद में मिला ऐसा वर्णन विशेष सत्य दिखता है। 330
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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