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________________ श्री उपदेश माला गाथा १५१ स्वजन भी अनर्थकर, संबंधी परशुराम-सुभृमचक्री की कथा करूँगी?'' रेणुका की बात मानकर यमदग्नि ने उसे दो चरु मंत्रित करके दिये। रेणुका ने शूरवीर पुत्र की अभिलाषा से क्षत्रियचरु का सेवन किया और ब्राह्मणचरु अपनी बहन अनंगसेना को भेजा। उसके सेवन से उसे एक पुत्र हुआ, जिसका नाम कीर्तिवीर्य रखा गया। रेणुका के भी पुत्र हुआ, उसका नाम रखा गया-'राम'। एक दिन अतिसार रोग से पीड़ित एक विद्याधर उसके आश्रम में आया। राम ने उसका भलीभांति आदर-सत्कार किया और उसके द्वारा किये गये औषध का सेवन करने से वह स्वस्थ हुआ। विद्याधर ने प्रसन्न होकर राम को परशुविद्या सिखाई। परशुविद्या की साधना करने से जगत् में वह परशुराम के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उसके बाद परशुराम उस देवाधिष्ठित परशु (कुल्हाड़ी) को साथ में लिये अजेय बनकर देशदेशांतर में घूमने लगा। एक बार परशुराम की माता रेणुका अपनी बहन से मिलने हस्तिनापुर आयी हुई थी। वहाँ अपने बहनोई अनंतवीर्य के साथ उसका अनुचित संबंध हो गया, जिससे रेणुका को गर्भ रह गया। गर्भकाल पूरा होने पर पुत्र हुआ। पुत्र को लेकर रेणुका यमदग्नि के आश्रम में आयी। परशुराम को जब अपनी माता के इस दुश्चरित्र का पता लगा तो उसने परशु से पुत्रसहित अपनी माता को मार डाला। जब अनंतवीर्य के पास यह खबर पहुँची तो उसने क्रुद्ध होकर वहाँ आकर यमदग्नि के आश्रम को छिन्नभिन्न कर डाला। इस पर परशुराम को बहुत क्रोध आया, उसने परशु से अनंतवीर्य का सिर काट दिया। अनंतवीर्य की मृत्यु के पश्चात् उसके राज्य का उत्तराधिकारी उसका पुत्र कीर्तिवीर्य हुआ। उसने पिता के वैर का बदला लेने के लिए परशुराम के पिता यमदग्नि को मार डाला। इससे क्रुद्ध होकर परशुराम हस्तिनापुर पहुंचा और कीर्तिवीर्य को मारकर उसका राज्य अपने कब्जे में ले लिया। उस समय कीर्तिवीर्य की पत्नी तारारानी गर्भवती थी। उस शिशु के गर्भ में आते ही उसने १४ स्वप्न देखे थे। इसीलिए गर्भस्थ भाग्यशाली शिशु की रक्षा के लिए वह भागकर जंगल में पहुँची। वहाँ उसने तापसों को अपनी सारी आपबीती सुनाकर . उनके आश्रम में आश्रय मांगा। तापसों ने दयार्द्र होकर गुप्त रूप से उसे भोयरे में रखी। गर्भकाल पूर्ण होने पर तारारानी ने एक पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम 'सुभूम' रखा। 'सुभूम' का वहाँ सुख पूर्वक पालनपोषण होने लगा। इन घटनाओं के बाद परशुराम को सभी क्षत्रियों पर क्रोध उमड़ा और सात बार पृथ्वी निःक्षत्रिय बना दी और मृत क्षत्रियों की दाढ़ों को एकत्रित कर उसने एक बड़ा थाल भर दिया था। एक दिन घूमता-घूमता पस्शुराम उन तापसों के आश्रम में पहुँचा ही था 261
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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