SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 281
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्वजन भी अनर्थकर, पिता कनककेतु राजा की कथा श्री उपदेश माला गाथा १५० आया । वहाँ एक पेड़ के नीचे बैठकर सोचने लगा- 'बचपन में मेरे संबंध में एक मुनि ने कहा था कि 'यह राजा को मार्गदर्शन देने वाला राज्य संचालन कुशल मंत्री होगा।' अतः अब मुझे राजा के योग्य किसी पुरुष की खोज करनी चाहिए । ' चाणक्य इसी धुन में अनेक गाँवों और नगरों में घूमता हुआ नंदराजा के मयूरपाल के गाँव में पहुँचा। वहाँ वह संन्यासी वेष में भिक्षार्थ घूमने लगा। वह मयूरपालक के यहाँ पहुँचा वहाँ उसकी गर्भवती पत्नी को चन्द्रपान करने का दोहद पैदा हुआ था। और वह किसी भी उपाय से पूर्ण नहीं होगा ऐसा सोचकर उस महिला ने अपने पति से नहीं कहा; इस कारण दिनोंदिन दुर्बल होती जा रही थी। मयूरपालक के बहुत अनुरोध पर उसकी पत्नी ने सारी बात खोलकर कही । मयूरपालक ने चाणक्य को देखकर दोहद पूर्ण करने का उपाय पूछा। चाणक्य ने कहा- "मैं इस दोहद को आसानी से पूर्ण करने का उपाय बता सकता हूँ; बशर्ते कि इस गर्भस्थ शिशु को मुझे दे दोगे। अन्यथा, यह दोहद पूर्ण नहीं होगा और इस महिला एवं गर्भस्थ शिशु दोनों के जान को खतरा है। " पंचों के सामने जब मयूरपालक ने अपना पुत्र चाणक्य को दे देना स्वीकार किया तो चाणक्य ने घास की एक झोंपड़ी बनाई। उसके बीचोबीच एक छिद्र रखा, ताकि चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब उसमें से होकर नीचे पड़ सके। एक आदमी को चाणक्य ने सारी बात समझाकर एक ढक्कन देकर उसे झोंपड़ी पर चढ़ा दिया। गर्भवती महिला को झौंपड़ी में बिठा दिया। आधी रात को जब चन्द्रमा आकाश के बीचोबीच आया तो दूध से भरी एक गोल थाली उस महिला के सामने रखी। थाली में चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब पड़ा तो चाणक्य ने कहा"भाग्यशालिनी ! तेरे भाग्य से ही यह चन्द्रमा यहाँ आया है, इसीलिए सहर्ष इसका पान कर। " यों कहते ही महिला उसे चन्द्र समझकर पान करने लगी। ज्यों-ज्यों क्रमशः वह दूध पीती जाती थी, त्यों-त्यों छप्पर पर बैठा हुआ मनुष्य उस ढक्कन से छिद्र को ढकता जाता था। जब वह थाली का दूध सारा का सारा पी गयी तो छिद्र भी बंद हो गया। वह भी समझ गयी कि 'मैंने चन्द्रपान कर लिया और मेरा दोहद पूर्ण हो गया।' चाणक्य दोहद पूर्ण करवाकर 'यही गर्भस्थ शिशु भविष्य में राज्याधिपति होगा' ऐसा मन में निर्णय कर धातुविद्या सीखने के लिए वहाँ से अन्यत्र चल पड़ा। देशाटन करते हुए काफी समय के बाद चाणक्य ने स्वर्णसिद्धि प्राप्त कर ली। इधर उस महिला ने पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम रख दियाचन्द्रगुप्त। जब वह आठ साल का हुआ तो अपने हमजोली ( समान आयु) लड़कों के साथ राजा का खेल खेला करता था। स्वयं राजा बनता, किसी को 254
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy