SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री उपदेश माला गाथा ५६ श्री स्थुलभद्र मुनि की कथा की मृत्यु हो जाने पर भी स्थूलभद्र नहीं आया। इधर नंदराजा ने शकडाल के स्थान पर श्रीयक को मंत्री-पद पर नियुक्त करना चाहा। श्रीयक ने यह कहकर मंत्रीपद लेने से इन्कार कर दिया कि 'मेरा बड़ा भाई स्थूलभद्र मंत्रीपद के योग्य है; उसे कोशा वेश्या के यहाँ से बुलाकर मंत्रीपद दे दीजिए।' नंदराजा ने तुरंत एक सेवक को स्थूलभद्र को बुलाने के लिए भेजा। स्थूलिभद्र के आने पर राजा ने उसे मंत्रीपद स्वीकार के लिए कहा। स्थूलिभद्र के मन में पिता की आकस्मिक मृत्यु का गहरा आघात था। इसीलिए राजा से उसने नम्रता पूर्वक कहा- "अभी तो मैं इतने वर्षों के बाद यहाँ लौटा हूँ मुझे इस पर कुछ सोच लेने का अवकाश दीजिए; तभी मैं आपको इस बारे में यथार्थ उत्तर दे सकूँगा।" राजा ने उसे सोचने का मौका दिया। स्थूलभद्र तुरंत वहाँ से उठकर अशोकवाटिका के सुरम्य, एकान्त, शांत स्थान में पहुँचा और स्वस्थ व शांत होकर विचार करने लगा-"अहो! यह संसार कितना स्वार्थी है! जब तक मनुष्य किसी की हाँ में हाँ मिलाकर कार्य करता रहता है; तब तक वह ठीक है; परंतु जब कभी सत्य और हितकर लेकिन प्रतिकूल बात कहता या करता है तो तुरंत उसे मौत के मुंह में धकेल दिया जाता है। इसीलिए नीतिज्ञ कहते हैं वृक्षं क्षीणफलं त्यजन्ति विहगाः, शुष्कं सरः सारसाः, पुष्पं पर्युषितं त्यजन्ति मधुपा, दग्धं वनान्तं मृगाः । निर्द्रव्यं पुरुषं त्यजन्ति गणिका, भ्रष्टं नृपं सेवकाः, सर्वः स्वार्थवशाज्जनोऽभिरमते, नो कस्य को वल्लभः ॥६६॥ अर्थात् - वृक्ष के फलरहित होते ही पक्षी वृक्ष को छोड़कर चले जाते . हैं, सरोवर के सूखते ही सारस देश छोड़ देते हैं, भौरे कुम्हलाए हुए फूल को छोड़ देते हैं, हिरण जले हुए वनप्रदेश सरोवर को छोड़कर चले जाते हैं, वेश्याएँ धनहीन पुरुष को छोड़ते देर नहीं लगाती, सेवक राज्य से भ्रष्ट राजा को छोड़ देते हैं। इसीलिए इस संसार में सभी लोग अपने-अपने स्वार्थवश एक-दूसरे से प्यार करते हैं; परंतु वास्तव में कोई किसी का प्रिय नहीं है।।६६।। इसीलिए मैं इस राज्य मुद्रा को लेकर क्या करूँगा! मेरे पिताजी ने राज्य का कार्य कुशलता पूर्वक किया, मगर ईष्यालु लोगों ने उनको भी मौत का शिकार बना डाला; तब फिर मुझे इस राज्य के पदाधिकारी बनने से कौन-सा सुख मिलेगा? धिक्कार है, अनेक अनर्थों के कारण इस राज्य को! जिन विषयसुखों की इच्छा-पूर्ति करने के लिए मनुष्य राज्य की खटपट में पड़ता है, वे विषयसुख भी तो क्षणिक है और उनके उपभोग का इच्छुक व्यक्ति भी क्षणिक होने से इन्हें बिना --- 149
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy