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________________ संपादकीय वृद्धवादानुसार यह उपदेशमाला प्रभु महावीर स्वामी के हस्तदिक्षित शिष्य अवधिज्ञानी श्री धर्मदास गणि के द्वारा रचित ग्रंथ है। श्री धर्मदास गणिवर कब हुए इस विषय में इतिहासज्ञो में मतभेद है। इस विषय में आचार्य श्री मुनिचंद्र सूरीश्वरजी द्वारा संपादित श्री जिन शासन आराधना ट्रस्ट मुंबई से प्रकाशित उपदेश माला सटीक में विस्तृत विचारणा की है। विद्वानों को उसे पढ़नी चाहिए। ___ यह ग्रंथ वैराग्य वर्द्धक है। आत्मा को जागृत करने वाला है। मार्ग पर चलने वालों के लिए सर्च लाइट का कार्य करने वाला है। गुण स्थानक पर आरोहक के लिए परिपूर्ण रूप से सहायक है। ऊपर चढ़ने वाला अगर गिरने लगे तो उसे सहारा देकर पुनः ऊपर चढ़ाने के लिए सक्षम सहायक है। विचारों की अशुद्धि एवं वर्तन की विपरीतता को दूर कर विशुद्धता की वृद्धि कराने वाला है। मार्ग पर चलने वाला मार्ग भूल गया हो तो उसे भोमिया बनकर मार्ग पर चढ़ाने वाला है। __ श्रमण संघ एवं श्रमणोपासक संघ दोनों के लिए यह ग्रंथ अत्यंत उपयोगी हैं। आराधक आत्मा के लिए आराधना में अमृत का सिंचन कर आत्मा को अमर पद प्रदान करवाने का अत्युत्तम विशिष्ट साधन है। इस ग्रंथ को जितनी उपमाओं से उपमित करे उतनी उपमाएँ दी जा सकती है। और वे अल्प ही होगी। इस ग्रंथ की उपलब्ध श्लोक संख्या ५४४ है। ग्रंथ में ५४२ वीं गाथा में ५४० गाथा का उल्लेख है। जिन शासन में अंको का भी महत्त्व है। नौं का अंक अखंड माना गया है। पंच मंगलमहाश्रुत स्कंध के पांच और चार पद है। उसी का अनुसरण इस में मिलता है। प्रथम पांच का अंक दूसरा ४ का अंक । अंत की शून्य आत्मा को कर्मशून्य बनाने के लिए यह ग्रंथ अत्यंत उपयोगी है। - नौं का अंक अखंड है, नवकार शाश्वत है वैसे ही यह उपदेश माला भी चिरंजीवी है। वृद्धवादानुसार यह ग्रंथ पच्चीससो वर्ष पुराना है। इससे यह चिरंजीवी है। इसमें २३० वीं गाथा में श्रावक के कर्तव्यों के वर्णन के अन्तर्गत जिन मंदिर में प्रभु प्रतिमा की पूजा का विधान किया है उसमें "धूव पुप्फ गंध" शब्द का प्रयोग है। vi -
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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