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शिवम् जीवन जीना सामान्य बात है। अध्यात्मपूर्ण जीवन जीना महत्त्वपूर्ण एवं विशिष्ट बात है। परम श्रद्धेय गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी बहआयामी व्यक्तित्व से संपन्न महापुरुष थे। उनके जीवन का केन्द्रीय आयाम था अध्यात्म। वे अध्यात्म के महान् उपदेष्टा और प्रखर प्रयोक्ता थे। पज्य गुरुदेव कुशल अनुशास्ता थे। उनकी अनुशासन शैली के अंग थे- वात्सल्य भाव और कठोरता। वे इन दोनों का प्रयोग करते थे। वत्सलता का प्रयोग करते तो कई बार प्रचुर मात्रा में वात्सल्य और स्नेह उंडेल देते और यदा
कदा जब कड़ाई करते तो वह भी करीब-करीब पराकाष्ठा तक पहुंचने · वाली होती थी। इस कड़ाई के बावजूद भी उनमें बड़ी निर्मलता थी। उनमें कषाय का हल्कापन था, ऐसा प्रतीत होता है। ___ गुरुदेव तुलसी निर्मोह साधना के महान् साधक थे। संयोग-वियोग की स्थितियां उन्हें कम प्रभावित करती थीं। उनके जीवन-पथ में विरोध
और अवरोध भी प्रचुर मात्रा में आए, परन्तु उनके साहस, शौर्य और सूझबूझ के सम्मुख प्रतिकूल स्थितियां भी अपना रास्ता बदल लेती थीं। ऐसे महान् व्यक्तित्व के धनी पूज्य गुरुदेव तुलसी के जीवन-संस्मरणों को आलोक-स्तम्भ और आदर्श के रूप में सामने रखा जा सकता है। ... समणी कुसुमप्रज्ञाजी साहित्यिक प्रगति में संलग्न हैं। उन्होंने गुरुदेव के साहित्य का अवगाहन किया है। प्रस्तुत पुस्तक में उन्होंने गणाधिपति तुलसी के जीवन के आध्यात्मिक पक्ष को उजागर किया है। इससे पाठकों को आध्यात्मिक पथदर्शन और संपोषण प्राप्त हो, ऐसी मंगलकामना है।
-युवाचार्य महाश्रमण तेरापंथ भवन, गंगाशहर २९-१०-१९९७