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________________ सुन्दरम् एक सुदर्शन व्यक्तित्व की पहचान थी आचार्य तुलसी। एक ऊर्जस्वल व्यक्तित्व का नाम था आचार्य तुलसी। बाहर से जितने आकर्षक, भीतर से उतने ही पावन । एक बहुत बड़े समुदाय के सक्षम अधिशास्ता पर भीतर में प्रदीप्त आत्मानुशासन की अलौकिक आभा। जितनी कल्पना-प्रवणता, उतनी ही सृजनशीलता। धर्मसंघ की मौलिक परम्पराओं के जितने संपोषक, उतनी ही प्रयोगधर्मिता। सबसे बड़ी प्रयोगशाला थी उनका अपना जीवन। वैसे उन्होंने संघ को भी सजीव प्रयोगशाला बना दिया। उनके कुछ प्रयोग तो ऐसे हैं, जो दूसरों के लिए अज्ञात या अल्पज्ञात हैं। कुछ प्रयोगों की सूचना उनकी दैनंदिनी से मिल सकती है। वास्तव में वे एक प्रयोगधर्मा पुरुष थे। प्रयोगों की विभिन्न भूमिकाओं में एक भूमिका है साधना की। ग्यारह वर्ष की अपरिणत वय में जीवनभर साधना का संकल्प स्वीकार करने वाले किशोर का मन कितना फौलादी रहा होगा। उनका तारुण्य समय की परतों से कभी आच्छादित नहीं हुआ। उनकी साधना में प्रौढ़ता का निखार पग-पग पर परिलक्षित होता रहा। साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी' पुस्तक में उनकी साधना के कुछ आयाम उद्घाटित हुए हैं। समणी कुसुमप्रज्ञा ने आचार्य प्रवर के साहित्य का अनुशीलन किया है। अपनी निष्ठा और तन्मयता से उन्होंने जितना लिखा है, वह वक्तव्य का बहुत थोड़ा सा अंश है। अशेष को रूपायित करना संभव भी नहीं है। फिर भी अभी बहुत कुछ ऐसा है, जिसे कलमबंद किया जा सकता है। प्रस्तुत पुस्तक पाठकों को आचार्यश्री की साधना या प्रयोगधर्मिता की झलक भी दिखा सकी तो वह लेखिका की श्रद्धार्पणा का एक जीवंत उपक्रम बन जायेगी। -साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा भीनासर १९-१२-१९९७
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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