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[अ०७-८
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दशवकालिकसूत्रम्. भासाए दोसे य गुणे य जाणिया
तीसे य दुटे परिवज्जए सया। छसु संजए सामणिए सया जए
वएज्ज बुद्धे हियमाणुलोमियं ॥५६॥ परिक्ख-भासी सुसमाहिइन्दिए
चउक्कसायावगए अणिस्सिए । स निडुणे धुत्त-मलं पुरे-कडं, ____ आराहए लोगमिणं तहा परं ॥५७॥ ति बेमि ॥
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( आयारपणिही.)
॥ अष्टममध्ययनम् ॥ आयार-पणिहिं लहूं जहा कायव भिक्खणा । तं भे उदाहरिस्सामि आणुपुष्विं, सुणेह मे ॥१॥ पुढवि दग अगणि मारुय तण रुक्ख स-बीयगा। तसा य पाणा जीव ति इइ वुत्तं महेसिणा ॥२॥ तेसिं अच्छण-जोरण निच्चं होयवयं सिया। मणसा काय वक्केण, एवं भवइ संजए ॥३॥ पुढवि भित्ति सिलं लेखें नेव भिन्दे न संलिहे। तिविहेण करण-जोएण संजए सु-समाहिए ॥४॥
१ भासाय.