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दशवकालिकसूत्रम्
[अ०५-१. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा। उदगम्मि होज निक्खितं उतिङ्ग-पणगेसु वा ॥ ५९॥ तं भवे भतपाणं तु संजयाण अकप्पियं । देन्तियं पडियाइक्खे ,न मे कप्पइ तारिस “ ॥६॥ असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा। अगणिम्मि होज्ज निक्खितं तं च संघट्टिया दए ॥६१॥ तं भवे भतपाणं तु संजयाण अकप्पियं। देन्तियं पडियाइक्खे ,न मे कप्पड तारिस“ ॥६॥ एवं उस्सक्किया ओस किया उज्जालिया पज्जालिया
निवाविया। - उस्मिचिया निस्सिञ्चिया उबतियाओयारियादए॥६॥ तं भवे भतपाणं तु संजयाण अकप्पियं । देन्तियं पडियाइक्खे ,न मे कप्पइ तारिस" ॥६४॥ होज्न कद्र सिले वा वि इट्टालं वा वि एगया। ठवियं संकमाए तं च होज्ज चलाचलं ॥६५॥ न तेण भिक्ख गछज्जा, दिट्रो तत्थ असंजमो। गम्भीरं सिरं चेव सविन्दिय-समाहिए ॥६६॥
१ तारिस भत्त° and तं भवे. २ म ओयत्तिया (s jोवत्तिया) Avach. also अपवर्त्यः ३ सिलं, H and Avach. शिला.