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2. 2. 13. 5.] किरियाठाणज्झयणे ( अन्नयरेण वा दवरएण ) पासाई उद्दालिता भवइ, दण्डेण वा अट्ठीण वा मुट्ठीण वा लेलण वा कवालेण वा कायं आउट्टित्ता भवइ । तहप्पगारे पुरिसजाए संवसमाणे दुम्मणा भवइ, पवसमाणे सुमणा भवइ, तहप्पगारे पुरिसजाए दण्डपासी दण्डगुरुए दण्डपुरकडे अहिए इमंसि लोगसि अहिए परंसि लागसि संजलगे कोहणे पिट्टिमंसी यावि भवइ । एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावजं ति आहिजइ । दसमे किरियहाणे मित्तदोसवत्तिए त्ति आहिए ॥ ११ ॥
अहावरे एक्कारसमे किरियहाणे मायावत्तिए त्ति आहिजइ । जे इमे भवन्ति-गूढायारा तमोकसिया उलुगपत्तलहुया पव्वयगुरुया ते आरिया वि सन्ता अणारियाओ भासाओ वि पउञ्जन्ति, अन्नहासन्तं अप्पाणं अन्नहा भन्नन्ति, अन्नं पुट्ठा अन्नं वागरन्ति, अन्नं आइक्खियव्वं अन्नं आइक्खन्ति । से जहानामए केइ पुरिसे अन्तोसल्ले तं सहं नो सयं निहरइ नो अन्नेण निहरावेइ नो पडिविद्धंसेइ, एवमेव निण्हवेइ, अविउट्टमाणे अन्तोअन्तो रियइ, एवमेव माई मायं कट्टु नो आलोएइ नो पडिक्कमेइ नो निन्दइ नो गरहइ नो विउट्टइ नो विसोहेइ नो अकरणाए अब्भुढेइ नो अहारिहं तवोकम्मं पायच्छित्तं पडिवाइ, माई अस्सि लोए पञ्चायाइ माई परंसि लोए पुणो पुणो पञ्चायाइ निन्दइ गरहइ पसंसइ निचरइ न नियट्टइ निसिरियं दण्डं छाएइ, माई असमाहडसुहलेस्से यावि भवइ । एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावजं ति आहिजइ । एक्कारसमे किरियट्टाणे मायावत्तिए त्ति आहिए ।। १२ ॥
अहावरे बारसमे किरियहाणे लोभवत्तिए त्ति आहिजइ । जे इमे भवन्ति, तं जहा-आरण्णिया आवसहिया गामन्तिया कण्हुईरहस्सिया नो बहुसंजया नो बहुपडिविरया सव्वपाणभूयजीवसत्तेहिं ते अप्पणो सच्चामोसाई एवं विउञ्जन्ति । अहं न हन्तव्यो अन्ने हन्तव्वा, अहं न अञ्जावेयव्वो अन्ने अजावेयव्या, अहं न परिघेयव्यो अन्ने परिधेयव्वा,