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सूयगडम्मि
[1. 11. 16जे केइ लोगम्मि उ अकिरियआया अन्नेण पुट्ठा धुयमादिसन्ति । आरम्भसत्ता गढिया य लोए धम्मं न जाणन्ति विमोक्खहउँ ॥ १६ ॥ पुढो य छन्दा इह माणवा उ किरियाकिरीयं च पुढो य वायं । जायस्स बालस्स पकुव्व देहं पवड्डई वेरमसंजयस्स ॥ १७ ॥ आउक्खयं चेव अबुज्झमाणे ममाइ से साहसकारि मन्दे। अहो य राओ परितप्पमाणे अट्टेसु मूढे अजरामरे व्व ॥ १८॥ जहाहि वित्तं पसवो य सव्वं जे बन्धवा जे य पिया य मित्ता । लालप्पई से वि य एइ मोहं अन्ने जणा तसि हरन्ति वित्तं ॥ १९ ।। सीहं जहा खुडमिगा चरन्ता दूरे चरन्ति परिसंकमाणा । एवं तु मेहावि समिक्ख धम्मं दूरेण पावं परिवजएजा ॥ २० ॥ संबुज्झमाणे उ नरे मईमं पात्राउ अप्पाण निवट्टएजा । हिंसप्पसूयाइँ दुहाइँ मत्ता वेरानुबन्धीणि महब्भयाणि ॥ २१ ॥ मुसं न बूया मुणि अत्तगामी निव्वाणमेयं कसिणं समाहिं । सयं न कुजा न य कारवेजा करन्तमन्नं पि य नाणुजाणे ॥ २२ ॥ सुद्धे सिया जाएँ न दूसएजा अमुच्छिए न य अज्झोववन्ने । धिइमं विमुक्के न य पूयणही न सिलोयगामी य परिवएजा ॥ २३ ॥ निक्खम्म गेहाउ निरावकंखी कायं विउस्सेज नियाणछिन्ने । नो जीवियं नो मरणाभिकंखी चरेज भिक्खू वलया विमुक्के ॥ २४ ॥
त्ति बेमि ॥ समाहियज्झयणं दसम