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सूत्रकृताङ्गानयुक्तिः अस्थि त्ति किरियवाई वयन्ति नत्थि त्तिकिरियवाई य । अन्नाणी अन्नाणं विणइत्ता वेणइयवाई ॥११८ ॥ आसियसयं किरियाणं अकिरियाणं च होइ चुलसीई । अन्नाणिय सत्तही वेणइयाणं च बत्तीसा ॥ ११९ ॥ तेसि मताणुमएणं पन्नवणा वण्णिया इहज्झयणे । सब्भावणिच्छयत्थं समोसरणमाहु तेणं तु ॥ १२० ॥ सम्मदिट्टी किरियावाई मिच्छा य सेसगा वाई । जहिऊग मिच्छवायं सेवह वायं इमं सच्चं ॥ १२१ ॥
Introduction to 1. 13. 1. णामतहं ठवणतहं दव्यतह चेव होइ भावतहं । दव्यतह पुण जो जस्स सभावो होइ दव्वस्स ॥१२२ ॥ भावतहं पुण नियमा णायव्वं छबिहम्मि भावम्मि । अहवा वि नाणसणचरित्तविणएण अज्झप्पे ॥ १२३ ॥ जह सुत्तं तह अत्थो चरणं चारो तह ति णायव्यं । सन्तम्मि पसंसाए असई पगयं दुगुच्छाए । १२४ ॥ आयरियपरंपरएण आगयं जो उ छेयबुद्धीए । कोवेइ छेयवाई जमालिनासं स णासिहिइ ॥ १२५ ॥ ण करेइ दुक्खमक्खिं उअममागो वि संजमतवेसुं । तम्हा अनुक्करिसो वञ्जअव्या जइजणणं ॥ १२६ ॥
Introduction to 1. 14. 1. गन्थो पुबुद्दिवो दुविहो मिस्सो य होइ णायव्यो । पव्यावण सिक्खावण पगयं सिक्खावणाए उ ॥ १२७ ॥ सो सिक्खगो य दुविहो गहणे आसेवाणाय णायव्यो । गहणम्भि होइ तिविहो मुत्ते अत्थे तदुभए य ।। १२८ ॥ आसेवणाय दुविहो मूलगुणे चेव उत्तरगुणे य। मूलगुणे पञ्चविहो उत्तरगुण बारसविहो उ ॥ १२९ ॥ रायगडं...१०