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________________ माम समवायेन मशनसानुयोगि संयोग विशिष्ट सिन् पतित्प विशिष्टाभाव सक्षरा घटछ नहीं जनी शडे. परंतु सिन भशनसानुयोगि संयोग विशिष्ट समवायेन पहित्य विशिष्टाभाव सक्षरा घट: जनशे. माम साध्याभावाधिश पर्वतादिन जनतांठ सघाहिजनशे, तनिइपित वृत्तित्वाभाप धूभमां ठतां सक्षा समन्वय य.शे. गूढामृतलीला (५९) भवता समवायेन महानसानुयोगिक संयोग विशिष्ट कालिकेनवह्नित्वविशिष्टाभावमादायाव्याप्तिवारणाय साध्यतावच्छेदकताविशिष्टावच्छेदकता निरूपकत्वं विवक्षितम् । तत्र वैशिष्ट्यं पूर्वोक्तोभयसम्बन्धेन प्रदर्शितम् । तथापि कालिकेन महानसानुयोगिक संयोग विशिष्ट समवायेन वह्नित्वविशिष्टसाध्यकस्थले समवायेन महानसानुयोगिक संयोग विशिष्ट समवायेन वह्नित्व विशिष्टाभावमादायाव्याप्तिस्तु भवत्येव । तथाहि समवायेन महानसानुयोगिक संयोग विशिष्ट समवायेन वह्नित्व विशिष्टाभावीयप्रतियोगिता निरूपित महानसानुयोगिक संयोग निष्ठवच्छेदकतायां स्व सामानाधिकरण्य, स्व निरूपित संसर्गतावच्छेदकता पर्याप्त्यधिकरणधर्मावच्छिन्न संसर्गताकत्वोभयसम्बन्धेन समवायावच्छिन्नवह्नित्वनिष्ठवच्छेदकता वैशिष्ट्य सत्त्वात् । स्व - वह्नित्व निष्ठ साध्यतावच्छेदकता, तत्सामानाधिकरण्यं - वह्नित्व निष्ठप्रतियोगितावच्छेदकतायामस्ति । एवञ्च द्वितीय स्व पदेन वह्नित्वनिष्ठा साध्यतावच्छेदकता, तन्निरूपिता या संसर्गता - समवाय निष्ठ संसर्गता, तदवच्छेदकतायाः पर्याप्त्यधिकरणो धर्मः - समवायत्वम् तदवच्छिन्ना या संसर्गतासमवाय निष्ठा संसर्गता, तन्निरूपकत्वम् - वह्नित्व निष्ठ प्रतियोगितावच्छेदकतायामस्त्येव । (९०)
SR No.002343
Book TitleGudhamrutlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajdharmvijay
PublisherShrutgyan Sanskar Pith
Publication Year
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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