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मज्झत्थमसंबध्धे परत्थकामोवभोगी य ॥५८॥ वेशा इव गिहवासं पालइ सत्तरसपयनिबध्धं तु। भावगयभावसावगलक्खणमेयं समासेण ॥५९॥ इत्थीमणत्थभवणं चलचित्तं नरयवत्तिणीभूयं । जाणतो हियकामी वसवत्ती होइ न ह तीसे ॥६०॥ इंदियचवलतुरंगे दोग्गइमग्गाणुधाविरे निन्छ । भावियभवस्सरूवो रंभइ सन्नाणरस्सीहि ॥६१॥ सयलाणत्थनिमित्त आयासकिलेसकारणमसारं । नाऊण धणं धीरो न हु लुब्भइ तंमि तणुयंपि ॥६२॥ दुहरूवं दुक्खफलं दुहाणुबन्धि विडंबणारूवं । संसारमसारं जाणिऊण न रई तहिं कुणइ ॥६३॥ खणमेत्तसुहे विसए विसोवमाणे सयावि मन्नंतो । तेसु न करेइ गिद्धिं भवभीरू मुणियतत्तत्थो ॥६४॥ वजइ तिव्वारंभं कुणइ अकामो अनिव्वहंतो उ। थुणइ निरारंभजणं दयालुओ सव्वजीवेसु ॥६५॥ गिहवासं पासं पिव मन्नंतो वसइ दुक्खिओ तंमि । चारित्तमोहणिज्जं निजिणि उज्जमं कुणइ ॥६६॥ अत्थिक्कभावकलिओ पभावणा वनवायमाईहिं। गुरुभत्तिजओ धीमं धरेइ सइ दसणं विमलं ॥६५॥ मडरिगपवाहेणं गयाणुगइयं जणं वियाणंतो । परिहरइ लोगसन्नं सुसमिक्खियकारओ धीरो ॥६८|| नत्थि परलोगमग्गे पमाणमन्नं जिणागमं मोत्तुं । आगमपुरस्सरं चिय करेइ तो सव्वकिच्चाई ॥६९॥ अनिगूहितो सत्ति आयाबाहाए जह बहुं कुणइ । आयरइ तहा सुमई दाणाइचउव्विहं धम्मं ॥७०॥ हियमणवज किरियं चिंतामणिरयणदुल्लह लहिउ। सम्मं समायरंतो न हु लजइ मुद्धहसिओवि ॥७१॥ देहट्टिइनिबंधणधणसयणाहारगेहमाईसु। निवसइ अरत्तदुट्ठो संसारगएमु भावेसु ॥७२॥ उवसमसारवियारो वाहिज्जइ नेय रागदोसेहिं । मज्झत्यो हियकामी असग्गहं सव्वहा चयइ ॥७३॥ भावेतो अणवरयं खणभंगुरयं समत्थवत्थूणं । संबद्धोवि धणाइसु वजइ पडिबंधसंबंधं ॥७४॥ संसारविरत्तमणो भोगुवभोगा न तित्तिहेउत्ति । नाउ
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