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उस्सग्गववाइयं चेत्र || ४०० || जहठियदव्त्र न याणइ, सच्चित्ताचित्तमीसियं चेव । कप्पाकप्पं च तहा, जुग्गं वा जस्स जं होई ॥ ४०२ ॥ जहठियखित्त न जाणइ, अद्धाणे जणवए अ जं भणियं । कालंपि अ नवि जाणइ, सुभिक्खदुभिक्ख जं कप्पं ॥ ४०२ ॥ भावे हट्ठगिलाणं, नवि याणइ गाढऽगाढकप्पं च । सहुअसहुपुरिसरूवं, वत्थुमवत्थं च नवि जाणे ॥ ४०३ || पडिसेवणा चउद्धा, आउट्टिपमायदष्पकप्पेसु । नवि जाणइ अग्गीओ, पच्छित्तं चेव जं तत्थ ।। ४०४ ॥ जह नाम कोइ पुरिसो, नयणविहूणो अदेसकुसलो य | कंताराडविभीमे, मग्गपणट्ठस्स सत्यस्स || ४०५ || इच्छइ य देसियत्तं, किं सो उ समत्य देसियत्तस्स ? । दुग्गाइँ अयाणतो, नयणविहूणो कहं देसे ? ॥ ४०६ ॥ युग्मम् ॥ एवमगीयत्थोऽविहु, जिणवयणपईवचक्खुपरिहीणो । दव्वाइँ भयाणतो, उस्सग्गववाइयं चेव ।। ४०७ || कह सो जयउ अगीओ ? कह वा कुणऊ अगीयनिस्साए ? । कह वा करे उ गच्छं ? सबालवुड्ढा - उलं सो उ ॥ ४०८ ॥ सुत्ते य इमं भणियं, अप्पच्छित्ते य देइ पच्छित्तं । पच्छित्ते अइमत्तं, आसायण तस्स महई उ ॥ ४०९ ॥ आसायण मिच्छत्तं, आसायणवज्जणा उ सम्मत्तं । आसायणानिमित्तं, कुव्वइ दीहं च संसारं ॥ ४१० ॥ एए दोसा जम्हा, अगीय जयंतस्सऽगीयनिस्साए । वट्ठावय गच्छस्स य, जो अ गणं देयगीयस्स || ४११ ।। अबहुस्सुओ तवस्सी, विहरिउकामो अजाणिऊण पहं । अवर । हपयसयाई, काऊणवि जो न याणेइ ॥ ४९२ ॥ देसि - यराइयसोहिय, वयाइयारे य जो न याणेइ । अविसुद्धस्स न बढइ, गुणसेढी तत्तिया ठाइ ॥ ४१३ ॥ युग्मम् । अप्पागमो किलिस्सइ, जइवि करेइ भइदुक्करं तु तवं । सुंदरबुद्धीइ कयं, बहुपि न सुंदरं होई ॥। ४१४ ॥ अपरिच्छियसुयनिहसस्स केवलमभिन्नसुत्तचारिस्स । सव्वुज्जमेणऽवि कयं, अन्नाणतवे बहु पई