________________
१६९
जइ ममत्तंपि । कह न पडिहांत कलिकलुसरोसदोसाण आवाए ॥ १११ ॥ अव कत्तिऊण जीवे, कत्तो घरसरणगुत्तिसंठप्पं । अवि कत्ति य तं तह, पडिभा अस्संजयाण पहे ॥ ११२ ॥ थोवोऽवि गिहिपसंगो, जइणो सुद्धस्स पंकमावहई । जह सो वारत्तरिसी, हसिओ पज्जोअनरवइणा ||११३ || सब्भावो वीसंभो, हो रइवइयरो अ जुवइजणे । सयणघरसंपसारो, तबसीलवयाई फेडिज्जा ॥ ११४ ॥ जोइसनिमित्तभक्खरकोउआएस भूइकमेहिं । करणाणुमोअणाहि अ, साहुस्स तबक्खओ होइ ॥ ११५ ॥ जह जह कीरइ संगो, तह तह पसरो खणे खणे होइ । थोत्रो होइ बहुओ, न य लहइ धिरं निरुभंतो ॥ ११६ ॥ जो चयइ उत्तरगुणे मूलगुणेऽवि अचिरेण सो चयइ । जह जह कुणइ पमायं पिल्लिजइ तह कसाएहिं ॥ ११७ ॥ जो निच्छएण गिन्हs, देहच्चावि न य धिइं मुअइ । सो साहेइ सकज्जं, जह चंद डिंसओ राया ॥ ११८ ॥ सीउन्हखुप्पिवासं दुरिसज्ज - परीसहं किलेसं च । जो सहइ तस्स धम्मो, जो धिइमं सो तवं चरइ ।। ११९ ।। धम्ममिणं जाणंता, गिहिणोऽवि दढव्वया किमु साहू ? | कमलामेलाहरणे, सागरचंद्रेण इत्युवमा || १२० ॥ देवेहिं कामदेवो, गिहीवि नवि चालिओ ( चाइओ । तवगुणेहिं । मत्तगयंदभुयंगमरक्खसधोरट्टहासेहिं ॥ १२१ ॥ भोगे अभुंजमाणावि केइ मोहा पति अहरगई । कुविओ आहारत्थी, जत्ताइ जणस्स दमगुव्व ।। १२२ ।। भवसयसहस्सदुलहे, जाइजरामरणसागरुत्तारे । जिणवयणम्मि गुणायर ! खणमवि मा काहिसि पमायं ॥ १२३ ॥ जं न लहइ सम्मत्तं, लद्धृणवि जं न एइ संवेगं । विसयसुहेसु य रज्जइ, सो दोसो रागदोसाणं ॥ १२४ ॥ तो बहुगुणनासाणं, सम्मत्तचरित्तगुणविणासाणं न हु वसमागंतव्वं, रागद्दोसाण पावाणं ॥ १२५ ॥ नवि तं कुणइ भमित्तो, सुठुवि सुविराहिलो सम
"