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* जिनपूजादि-फल स्तवन ॐ [रचयिता-प्राचार्य श्रीमद् विजय सुशील सूरि महाराज]
(ो पंखीड़ा ! जाजे पीयुना देशमां-ए राग)
प्रो पातमा ! जाना जिनमन्दिर में । प्रो जीवड़ा ! जाना जिनमन्दिर में। लाभ लेना दर्शन-पूजन का....
___ो पातमा ! ० ॥ (१)
चाह जब मन्दिर पाने की करता । फल उपवास का वहाँ ही मिलता । समय मिला पुण्य कमाऊँ का....
प्रो पातमा ! ० ॥ (२)
उठा जिणन्द के दर्शन करने को । दोय उपवास के पाता है फल को। समय मिला प्रभु - दर्शन का....
प्रो पातमा ! ० ॥ (३)
. मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-२११