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________________ ( ३६ ) इत्यादि की तल्लीनता आती है, जिसके जीवन का अनुभव सभी को होता है । आम जनता में सगालशा सेठ, नल-दमयन्ती, हरिश्चन्द्रतारामती तथा प्रह्लाद, ध्रुव आदि के प्राख्यान प्रसिद्ध हैं । भागवत, रामायण और महाभारत भी प्रसिद्ध हैं । कीर्तनकार जनता को सुनाकर उसमें धार्मिक संस्कारों का सिंचन पूर्व में भी करते थे और आज भी कर रहे हैं । कीर्तनकार भी कीर्तन करने में ऐसे भावविभोर हो जाते हैं कि उनके नयनों से प्रभु के प्रेम की अश्रुधारा बहती रहती है और वे स्वयं सात्त्विक आनंद का अनुभव करते हैं और आज भी कर रहे हैं । (३) स्मरण - चिन्तन - नवधा भक्ति पैकी यह भक्ति का तीसरा प्रकार है । श्रवण और कीर्त्तन से प्रभावित हुई आत्मा अपने अन्तःकरण में प्रभु की महिमा लाकर उनके गुणों का गहराई से स्मरण - चिन्तन करती है । तथा अपनी दृष्टि सम्मुख प्रभु की मूर्ति रखकर उनके गुणों का स्मरण- चिन्तन करते हुए उनमें रहे हुए प्रशान्तादि गुण अपने में भी प्रगटाती है। प्रभु का नित्य स्मरणचिन्तन करने से मनुष्य अपने सभी दुःख भूल जाता है । जैसे- प्रभु की स्तुति, स्तवन और स्तोत्रादि
SR No.002338
Book TitleJinmandiradi Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri, Ravichandravijay
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages220
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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