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________________ ( २६ ) उसका व्यापार भी बन्द हो गया । भी मुश्किल हो गई । आजीविका के लिए अन्त में, श्रीधर ने श्रम का तप करके शासनदेवी की आराधना की । उससे देवी ने प्रत्यक्ष होकर कहा कि- "मुझे कैसे याद किया ?" जिनपूजा करनी छोड़कर अन्य देव - देवियों की आराधना करने वाले हे श्रीधर ! जा, उनके पास प्रार्थना कर और सहायता की याचना कर ।" ऐसा कहकर और गुस्से में श्राकर शासनदेवी वहाँ से अदृश्य हो गई । इससे श्रीधर घबरा गया और मूढ़ बन गया । उसने पुनः साहस कर शासनदेवी की आराधना की । उससे शासनदेवी ने पुनः प्रत्यक्ष दर्शन दिया और श्रीधर को पुनः जैनधर्म में सुदृढ़ किया । अब श्रीधर भी अन्य सब देव-देवियों को छोड़कर सिर्फ देवाधिदेव वीतराग श्रीजिनेश्वर परमात्मा की अहर्निश त्रिकालपूजा करने लगा । उसके प्रभाव से फिर
SR No.002338
Book TitleJinmandiradi Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri, Ravichandravijay
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages220
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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