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________________ परिशिष्ट - १ AAA जिनदर्शन-पूजन की महिमा पवित्र भूमि है । एवं मन्दिर हैं । हमारी भारतीय संस्कृति तीर्थों एवं मन्दिरों की हमारी संस्कृति के संदेशवाहक तीर्थं दोनों विधायक साधन सुन्दर हैं । प्राणी मात्र की बाह्य और प्रांतरिक श्रावश्यकता तीर्थों और मन्दिरों में रही हुई प्रभु की मूर्ति से परिपूर्ण होती है । प्रभु वीतरागदेव की मूर्ति विश्व की जनता को आत्मोन्नति आदि कार्यों में सक्षम श्रालम्बन है । अपने चंचल मन को प्रसन्नता की ओर ले जाने के लिए प्रबल कारण है । जैसे स्विच बल्ब में प्रकाश को खींच लाती है वैसे वीतराग विभु की मूर्ति दूर रही हुई मुक्ति मंजिल को खींच लाती है । अर्थात् मुक्ति को अपने समीप लाने में प्रति सहायक बनती है ।
SR No.002338
Book TitleJinmandiradi Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri, Ravichandravijay
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages220
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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