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________________ 408 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन निरपेक्ष स्वातन्त्र्य (absolute freedom) में भाग लेता है। इस तात्विक दृष्टि से मनुष्य की नीति सापेक्ष है। श्री अरविन्द घोष के उक्त विचारों से यह प्रतिफलित होता है कि मानव-मन द्वारा निर्धारित जो नीति और नैतिक नियम हैं वे सापेक्ष हैं। मन से उनका अभिप्राय संवेगात्मक और बुद्धिपरक आत्मा है तथा जब आत्मा इस स्तर से ऊपर उठकर ज्ञानात्मा बन जाता है तब उसके द्वारा निर्धारत नीति निरपेक्ष होती है। जैन नीति में इस विचारधारा को स्थान मिला है। वहाँ छठे गुणस्थान तक जितनी भी कायिक वाचिक प्रवृत्तियाँ होती हैं, वे अधिकांश सापेक्ष हैं और मानसिक क्रियाएँ-संकल्प, ध्यान-जप आदि निरपेक्ष हैं। नीति, वास्तव में निरपेक्ष-सापेक्षात्मक है। जैन नीति की निरपेक्षता में सापेक्षता समाई हुई है तो सापेक्षता में निरपेक्षता अनुस्यूत है। पुनश्च, निरपेक्षता की कोटियाँ अथवा श्रेणियाँ नहीं है, वह सदा एकरस है, absolute है; जबकि सापेक्षता की अनेक श्रेणियाँ हैं। सापेक्षता का हार्द है-बुराई को सर्वदा त्यागना और यदि परिस्थितियों की जटिलता के कारण ऐसा न हो सके तो बड़ी बुराई को छोड़ देना और छोटी बुराई को कुछ समय के लिए ग्रहण करके फिर उसे भी त्यागकर शुभ की ओर प्रवृत्त होना और नैतिक शुभ (moral good) से परम शुभ की प्राप्ति (utmost good) हेतु गतिशील रहना। जैन नीति नैतिक सापेक्षता के प्रत्यय में उदार है। इसके अनुसार सैद्धान्तिक पक्ष, निरपेक्ष नैतिकता है और आचरण पक्ष सापेक्ष नैतिकता। उदाहरणतः अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह आदि नियम सिद्धान्ततः नैतिकता के निरपेक्ष रूप हैं, जबकि इनका व्यवहारतः पालन सापेक्ष नैतिकता की अपेक्षा रखता है। इसी प्रकार कहा जा सकता है कि साध्य अथवा नैतिक आदर्श निरपेक्ष होता है, जबकि उस साध्य अथवा नैतिक आदर्श की प्राप्ति का साधना-मार्ग, पुरुषार्थ आदि नैतिक सापेक्षता है। संक्षेप में, जैन नीति के अनुसार निश्चय दृष्टि निरपेक्ष नैतिकता है और व्यवहार दृष्टि अथवा व्यावहारिक आचार-विचार, किया-कलाप नीति-सापेक्ष पहलू है। ___ जैन-नीति के अनुसार निरपेक्षता और सापेक्षता दोनों का समन्वित रूप ही नैतिकता की संपूर्णता है। 1. The Synthesis of Yoga, ch. VII, 1953 2. देखिये; इस पुस्तक का अध्याय-“आध्यात्मिक उत्कर्ष का नीति-मनोविज्ञान।
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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