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________________ नीतिशास्त्र की पृष्ठभूमि नीति का मानदण्ड एक विद्वान आचार्य से किसी भद्र नागरिक ने पूछा-महाराज! मैं बहुत अल्पबुद्धि हूँ तथा धर्म-अधर्म की गंभीर चर्चा करने का समय भी नहीं मिलता और इतनी समझ भी नहीं है। मुझे तो सीधी भाषा में कर्त्तव्य-अकर्तव्य, धर्म-अधर्म का ज्ञान दीजिए। ____ आचार्य ने कहा-भद्र! धर्म-अधर्म, कर्तव्य-अकर्तव्य की तुला स्वयं तुम्हारा व्यवहार ही है। आचार्य ने एक गाथा कही जं इच्छसि अप्पणतो जं च न इच्छसि अप्पणतो। तं इच्छ परस्स वि एत्तियगं जिणसासणं॥ भद्र! जो तुम अपने लिए अच्छा समझते हो, तुम्हें जो प्रिय है, वही तुम दूसरों के लिए भी सोचो, और करो, जो तुम्हें अपने लिए अप्रिय लगता है, वह दूसरों के लिए भी मत करो-बस धर्मशास्त्र का यही, इतना ही रहस्य है, सार है। __ समाधानकर्ता आचार्य ने सूत्र रूप में समस्त कर्तव्य-अकर्तव्य, जीवन-व्यवहार का एक सुस्पष्ट मानदण्ड निरूपित कर दिया है। ___व्यवहार (behaviour), कर्तव्य (duty) आदि सब चैतन्य प्राणी के ही क्रिया-कलाप हैं; अचेतन अथवा जड़ तो स्वयं कोई क्रिया कर ही नहीं सकता चूंकि उसमें चेतना ही नहीं है। 1. बृहत्कल्पभाष्य, गाथा 4584
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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