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________________ नीतिशास्त्र की प्रकृति और अन्य विज्ञान / 77 जबकि नीतिविज्ञान अपनी दृष्टि आदर्शों पर केन्द्रित रखता है। वह यह तो बताता है कि मानव-जीवन की आदर्श स्थिति क्या है, उसका चरम लक्ष्य क्या है? किन्त वह लक्ष्य कैसे प्राप्त किया जा सकता है, उन साधनों को नहीं बताता। वह सिर्फ आदर्श की व्याख्या करता है। यह सिर्फ साध्य 'चाहिए' (ought) पर विचार करता है, साधन (means) पर नहीं। __ इसी कारण पश्चिमी विचारक नीतिशास्त्र को केवल नियामक विज्ञान (Normative Science-आदर्शात्मक विज्ञान) मानते हैं। किन्तु भारतीय चिन्तन में ऐसी एकांगी विचारधारा नहीं है। यहां साध्य और साधन तथा कर्तव्य और कर्तव्योपाय को अभिन्न माना गया है, एक ही सिक्के के दो पहलुओं के समान। नीतिशास्त्र भी, भारतीय चिन्तन के अनुसार, आदर्श स्थिति भी निरूपित करता है और साथ ही उस स्थिति तक पहुँचाने के साधनों की भी विवेचना करता है। लक्ष्य और मार्ग दोनों का ही विवेचन भारतीय नीतिशास्त्र का इष्ट है। यही इसकी पूर्णता है। भारतीय चिन्तन की स्पष्ट मान्यता है कि कर्तव्यबोध से ही मानव का कल्याण नहीं हो सकता, वह परम शुभ को प्राप्त नहीं कर सकता, इसके लिए तदनुकूल कर्म करना भी आवश्यक है। इस सन्दर्भ में आचार्य भद्रबाहु ने कहा है- अच्छे से अच्छा ‘पोत'जलयान भी हवा के बिना समुद्र को पार नहीं कर सकता, वैसे ही शास्त्रों का जानकार भी सत्कर्म किये बिना दुःखों से पार नहीं हो सकता है।' _ 'रोटी खाने से पेट भरता है' इस प्रकार का कोरा ज्ञान मनुष्य की क्षुधा को नहीं मिटा सकता; भूख तो तभी मिटेगी जब वह रोटी खायेगा। इसी प्रकार 'साध्य' का ज्ञान मात्र, साध्य तक नहीं पहुंचा सकता, सफलता प्राप्त नहीं करा सकता, सफलता के लिए तो साधनों को अपनाना ही पड़ेगा। इस ओर कर्तव्य करने पर ही व्यक्ति सफल होगा। ___ भगवान महावीर ने जीवन के परम शुभ तथा परम साध्य को प्राप्त करने के लिए दो उपाय बताये हैं विज्जाए चेव, चरणेण चेव। विद्या और आचरण से ही परम श्रेय को प्राप्त किया जा सकता है। 1. वाएण विणा पोओ न चएइ महण्णवं तरिउं-आवश्यक नियुक्ति, 95-96 2. स्थानांग सूत्र, 2/90
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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