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श्री क्षत्रियकुण्ड तीर्थ
तीर्थाधिराज * श्री महावीर भगवान, पद्मासनस्थ, श्यामवर्ण, लगभग 60 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) ।
तीर्थ स्थल * क्षत्रियकण्ड की तलेटी कण्डघाट से लगभग 5 कि. मी. दूर वनयुक्त पहाड़ी पर ।
प्राचीनता * इस तीर्थ का इतिहास चरम तीर्थकर भगवान श्री महावीर के पूर्व से प्रारम्भ होता हैं। भगवान महावीर के पिता ज्ञात वंशीय राजा सिद्धार्थ थे। यह क्षत्रियकुण्ड उनकी राजधानी थी । राजा सिद्धार्थ की शादी वैशाली गणतन्त्र के गणाधीस राजा चेटक की बहिन त्रिशला से हुई थी । (दिगम्बर मान्यतानुसार त्रिशला को राजा चेटक की पुत्री बताया जाता है) राजा चेटक श्री पार्श्वनाथ भगवान के अनुयायी थे । राजा चेटक की यह प्रतिज्ञा थी कि उनकी पुत्रियों का विवाह भी जैनी राजाओं से ही किया जायेगा । कितनी धर्म श्रद्धा थी उनमें । राजा सिद्धार्थ अति ही शांत, धर्म प्रेमी व जन-प्रिय राजा थे । क्षत्रियकुण्ड के निकट ही ब्राह्मणकुण्ड नाम का शहर था । वहाँ ऋषभदत्त नाम
का ब्राह्मण रहता था । उनकी धर्म पत्नी का नाम देवानन्दा था । आषाढ़ शुक्ला छठ के दिन उतराषाढ़ा नक्षत्र में माता देवानन्दा ने महा स्वप्न देखे । उसी क्षण प्रभु का जीव अपने पूर्व के 26 भव पूर्ण करके माता की कुक्षी में प्रविष्ट हुआ । स्वप्नों का फल समझकर माता-पिता को अत्यन्त हर्ष हुआ । गर्भकाल में उनके घर में धन-धान्य की वृद्धि हुई ।।
परन्तु जैन मतानुसार तीर्थकर पद प्राप्त करने वाली महान आत्माओं के लिये क्षत्रियकुल में जन्म लेना आवश्यक समझा जाता है । परन्तु मरीचि के भव में किये कुलाभिमान के कारण उन्हें देवानन्दा की कुक्षी में जाना पड़ा,-ऐसी मान्यता है । श्री सौधर्मेन्द्र देव ने देवानन्दा माता के गर्भ को क्षत्रिय-कुल के ज्ञात वंशीय राजा सिद्धार्थ की रानी त्रिशला की कुक्षी में स्थानान्तर करने का हरिण्यगमेषी देव को आदेश दिया । इन्द्र के आज्ञानुसार देव ने सविनय भक्ति भाव पूर्वक आश्विन कृष्ण तेरस के शुभ दिन उतराषाढ़ा नक्षत्र में गर्भ का स्थानांतर किया, उसी क्षण विदेही पुत्री माता श्री त्रिशला ने तीर्थकर जन्म सूचक महा-स्वप्न देखे । इस प्रकार भगवान का जीव माता त्रिशला की कुक्षी में प्रवेश
भगवान महावीर जन्म स्थान मन्दिर का बाह्य दृश्य- क्षत्रियकुण्ड