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श्री अष्टापद तीर्थ शास्त्रों में उल्लेखानुसार श्री ऋषभदेव भगवान, जिन्हें श्री आदिनाथ भगवान व आदीश्वर भगवान भी कहते हैं, अपने नवाणु पुत्रों व कई मुनिगणों के साथ माघ कृष्णा तृयोदशी के दिन इसी पर्वत पर से मोक्ष सिधारे थे । यह तीर्थ उस समय अयोध्या से 12 योजन (48 कोष) दूर व पर्वत की ऊँचाई आठ योजन होने का उल्लेख है । हो सकता है कालक्रम से दूरी कम-ज्यादा व पर्वत की ऊँचाई भी कम-ज्यादा हुई हो । कहा जाता है कि कैलाश पर्वत भी इसी को कहते थे । मान सरोवर इसके निकट था । कहा जाता है तीर्थ के सुरक्षार्थ श्री भरतचक्रवर्ती ने पर्वत को आठ खण्डों में विभक्त किया था अतः संभवतः इसी के कारण इसका नाम अष्टापद पड़ा हो ऐसा उल्लेख है । शिवपुराण में श्री ऋषभदेव भगवान कैलाश पर्वत पर से मोक्ष सिधारे थे ऐसा उल्लेख है ।
श्री ऋषभदेव भगवान मोक्ष सिधारे तब तीन स्तूपों के निर्माण करवाने का व पश्चात् श्री भरतचक्रवर्ती द्वारा यहाँ पर "सिंहनिषधा" नाम का भव्य, विशाल व रमणीय चौवीस जिन प्रासाद निर्माण करवाकर रत्नों की प्रतिमाएं प्रतिष्ठित करवाने का उल्लेख है । पश्चात् श्री भरतचक्रवर्ती भी यहीं से अनेकों मुनिगणों के साथ निर्वाण पद को प्राप्त होने का उल्लेख है । एक अन्य उल्लेखानुसार हस्तगिरि से मोक्ष सिधारे थे अतः यह संशोधनीय विषय है ।
तत्पश्चात् सगर चक्रवर्ती के पुत्रों द्वारा इस तीर्थ की रक्षार्थ पर्वत के आस पास खाई खुदवाकर गंगा के जल प्रवाह को उसमें ढालने का भी उल्लेख है । कालक्रम से खाई बहुत ही विशाल हो जाने के कारण साधारणतया आवागमन न हो सकने से तीर्थ अगम्य रहा । बर्फीली चट्टानों से पर्वत ढक जाने के कारण इसे धवलगिरि नाम सम्बोधित किये जाने का भी उल्लेख है ।
लंका नरेश राजा रावण ने इसी पर्वत पर चढ़ते समय गान नृत्य में प्रभु भक्ति में तल्लीन होकर तीर्थंकर नाम गौत्र का उपार्जन किया था । प्रभु वीर के प्रथम गणधर श्री गौतमस्वामीजी अपनी लब्धि से सूर्य की किरण के सहारे पहाड़ पर चढ़कर यहाँ की यात्रा करने व रास्ते में पांच सौ तापसों को अपनी लब्धि से पारणा करवाने का उल्लेख है ।
आज भी यह तीर्थ अगम्य है परन्तु आज कैलाश के नाम प्रचलित बर्फिली चट्टानों से ढका हुवा पर्वत तिब्बत के पास है जिसकी ऊँचाई समुद्र की सतह से 6714 मीटर (लगभग 20200 फीट) है मानसरोवर यहाँ से लगभग 22 कि. मी. है । मानसरोवर की ऊँचाई समुद्र की सतह से 4560 मीटर (लगभग 13725 फीट है।)
इस स्थान को हिन्दू व बुद्ध आम्नाय के लोग भी अपना तीर्थ धाम मानते हैं । काठमन्डु होकर भी एक रास्ता है, स्थान चैना सरकार के अंतर्गत रहने पर भी भारत सरकार तिब्बत सरकार से मिलझुल कर इंतजाम करती है ।
आने जाने में लगभग एक माह लगता है ज्यादातर पैदल या खच्चर पर ही चढ़ना पड़ता है । परन्तु कैलाश पर्वत पर चढ़ना आज भी असंभव है । मानसरोवर के पहिले से ही कैलाश के दर्शन होते है । कैलाश की परिक्रमा 16 कोष (32 मील) की है । श्रद्धालु भक्तजन कैलाश व मानसरोवर की भी प्रदक्षिणा देते हैं व मानसरोवर में पूजा-पाठ कर अपना मनोरथ पूर्ण करते हैं ।
इस ग्रंथ के पृष्ठ 19 पर कैलाश व मानसरोवर के मूल फोटुओं के साथ अष्टापद का अनुमानित फोटु व आदिनाथ भगवान के बहुत प्राचीन प्रतिमा का फोटु भी भाव यात्रा हेतु छापा है । विशेष विवरण हेतु सम्पर्क करें ।
संभवतः स्थान तो यही हो सकता है जहाँ से प्रभु मोक्ष सिधारे थे । यह वर्णन व फोटु भाव यात्रा में अवश्य सहायक होंगे । दर्शनार्थी प्रभु को भाव वन्दन कर पुण्योपार्जन करे, इसी मंगलमय कामना के साथ ।
- सम्पादक
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