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________________ श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय-पद्मपुर श्री पद्मपुर तीर्थ इस शहर के निकट की प्रायः सभी पहाड़ियों पर अनेकों जैन गुफाएं है जहाँ तीर्थंकर भगवंतो व देव-देवियों आदि की प्रतिमाएं उत्कीर्ण है अतः संभवतः पूर्व काल में इस शहर का घेराव 50-60 मील में अवश्य रहा होगा व ये सारी पहाड़ियाँ व आस-पास के गाँव इसी शहर के अंतर्गत रहे होंगे । जगह-जगह अनेकों मन्दिरों का भी निर्माण हुवा होगा, परन्तु आज स्थित श्वे. मन्दिरों में यह श्री चिन्तामणी पार्श्वनाथ भगवान का मन्दिर प्राचीनतम माना जाता है, जिसकी प्रतिष्ठा 512 वर्ष पूर्व होने का उल्लेख है। संभवतः उस समय जीर्णोद्धार होकर पुनः प्रतिष्ठा हुई हो । प्रभु प्रतिमा प्राचीन हरित वर्ण की अतीव भावात्मक है परन्तु प्रतिमा प्राचीन होने के कारण मोती का विलेपन किया हुवा है अतः सफेद है। विशिष्टता * श्री पद्मप्रभ भगवान के नाम पर यह नगरी बसने के कारण का पता नहीं परन्तु कुछ न कुछ सम्बंध अवश्य ही होगा जो यहाँ की विशेषता है। श्री पार्श्वनाथ भगवान की यह भी विहार भूमी रहने व यहाँ की प्रायः सभी पहाड़ियों पर अनेकों जैन गुफाएँ रहने व उनमें जिन प्रतिमाएं आदि उत्कीर्ण रहने के कारण भी यहाँ की मुख्य विशेषता है । नासिक से 10 कि. मी. दूर चामरलेनी नामक जैन गुफाएं है जिनमें कई प्रतिमाएं है उनमें ग्यारहवीं गुफा में स्थित श्री आदिनाथ प्रभु की पद्मासनस्थ लगभग 67 सें. मी. प्रतिमा अत्यन्त मनोरम हैं । नासिक से 22 कि. मी. पर अंजनेरी पहाड़ पर भी छोटी-बड़ी कई गुफाएं है, जहाँ अनेकों जिन प्रतिमाएं दर्शनीय है । पहाड़ के नीचे भी एक मन्दिर का ध्वंशेष है । इतनी ही दूरी पर चान्दोड गांव के निकट पहाड़ जो समुद्र की सतह से लगभग 4000 फीट ऊंचा है, वहाँ पर भी तीर्थंकर भगवंतों की अनेकों प्रतिमाएं उत्कीर्ण हुई है । यहाँ मनमाड़ से लगभग 10 कि. मी. पर अनकाई-टनकाई की गुफाएं मशहूर है । कुछ ध्वस्त भी हो चुकी है । लगभग 4 गुफाओं में जिन प्रतिमाएँ, यक्ष-यक्षणी की प्रतिमाएँ, कलात्मक स्तंभ, तोरण, गंधर्व-किन्नर, विद्याधरों आदि की प्रतिमाएं व अन्य कलात्मक अवशेष अतीव दर्शनीय हैं । उक्त विवरणों से पता चलता है कि पूर्वकाल में यह तीर्थाधिराज * श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण, लगभग 65 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) । तीर्थ स्थल * नासिक शहर की पुरानी ताम्बटलेन में जिसे श्री पार्श्वनाथ गली भी कहते हैं । प्राचीनता * आज का नासिक शहर पूर्वकाल में पद्मपुर, कुंभकारकृत, नासिक्यपुर आदि नामों से विख्यात था । उल्लेखों से प्रतीत होता है कि श्री पद्मप्रभ भगवान के नाम पर ही इस नगरी का नाम पद्मपुर पड़ा था व श्री पद्मप्रभु जैन तीर्थ रुप में विख्यात था परन्तु उसके कारण का पता नहीं । संभवतः श्री पद्मप्रभ भगवान का यहाँ पदार्पण हुवा हो या श्री पद्मप्रभु भगवान का कोई विशाल मन्दिर रहा हो या बना हो ___ श्री निशीथचूर्णी ग्रंथ में यहाँ की कथाओं का भी समावेश है । श्री पार्श्वनाथ भगवान की यह भी विहार भूमि रहने का उल्लेख है । कहा जाता है कि आर्य कालकाचार्य ने यहाँ रहकर निमित्त शास्त्र का अभ्यास किया था । 218
SR No.002330
Book TitleTirth Darshan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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