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________________ कलीकट में श्री कलिकुण्ड पार्श्वनाथ भगवान का प्राचीन श्वेताम्बर मन्दिर भी है । इसी मन्दिर के अहाते में लगभग 85 वर्ष पूर्व एक और मन्दिर हेतु नींव रखोदती वक्त 34 जैन प्रतिमायें सम्प्रतिकालीन भूगर्भ से प्राप्त हुई थी जो अभी भी वहाँ मन्दिर में विद्यमान है । इससे यह प्रतीत होता है कि यहाँ श्वेताम्बर आम्नाय के बंधुगण भी पूर्व काल में रहे हों। आज भी श्वे. आम्नाय के कई बंधुओं का केरल में निवास है । परन्तु बहुत कम है । प्रायः वे सभी राजस्थान या गुजरात विशिष्टता * यहाँ की प्राचीनता ही यहाँ की मुख्य विशेषता है क्योंकि केरल प्रांत में पूर्वकाल में जगह-जगह जैन मन्दिर होने का व वर्तमान में भी प्राचीन पूजित मन्दिरों के रहने का बहुत ही कम बंधुओं के ध्यान में है । इस मन्दिर के पुनः निर्माण हेतु कमेटी का गठन भी किया हुवा है । श्रवणबेलगोला व मूड़बद्री के भट्टारक स्वामीजी के व भारत वर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी के निर्देशन में इस स्थान को सुविख्यात तीर्थ का रुप देने की योजना है । श्री चन्द्रप्रभ भगवान के मोक्ष कल्याणक के पावन दिन अभी भी प्रतिवर्ष पहाडी पर बने मण्डप में पूजन का आयोजन होता है । इसी पहाडी पर कुछ प्राचीन जैन गुफाएं भी हैं । अन्य मन्दिर * वर्तमान में इस गांव में यही मन्दिर है । इस जिले के विभिन्न गांवों में निम्न सात और मन्दिर है । निकट के पालघाट जिले में भी एक प्राचीन मन्दिर है । 1. श्री आदीश्वर भगवान मन्दिर - मनन्थावाड़ी गांव से एक कि. मी. दूर । 2. श्री आनन्दपुरम श्री आदीश्वर भगवान - पुडियारडम गांव में मनन्थावाडी से आठ कि. मी. दूर । 3. श्री अनन्तनाथ भगवान मन्दिर - अनन्तकृष्णपुरम, कलपटा से 5 कि. मी. दूर । हजार वर्ष प्राचीन । 4. श्री अनन्तनाथ भगवान मन्दिर - वरडूर गांव 5. श्री पार्श्वनाथ भगवान मन्दिर - अंजकन्नू गांव कलपटा से 3 कि. मी. दूर कुछ मन्दिर खण्डहर हालत में भी विद्यमान है । सुलतान बल्तेरी का एक जैन मन्दिर पुरातत्व विभाग के देखभाल में है जहाँ अभी प्रतिमा नहीं है । कलपट्टा से लगभग तीन कि. मी. दूर चन्द्रगिरि पहाडी के ऊपर श्री चन्द्रप्रभ भगवान का एक अतीव प्राचीन मन्दिर है जो लगभग 1400 वर्ष पूर्व का था। इस मन्दिर को व श्री चन्द्रप्रभ भगवान की प्रतिमा को भारी क्षति पहुँची परन्तु प्रतिमा का मुखमण्डल अभी भी श्री पालुकुन्नू पार्श्वनाथ मन्दिर (दि.)-पालुकुन्न 200
SR No.002330
Book TitleTirth Darshan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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