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हेमकूट, चक्रकूट, रत्नकूट, हम्पी आदि प्राचीन काल श्री हेमकूट-रत्नकूट तीर्थ
से तीर्थ क्षेत्र रहे हैं । आज भी हेमकूट, चक्रकूट व
रत्नकूट के मन्दिर व भग्नावशेष पुरातत्व विभाग के तीथोधिराज * श्री अमीझरण चन्द्रप्रभ भगवान आधीन है । (श्वे. मन्दिर) ।
यहाँ पर अनेकों गुफाएं भी हैं, जो पूर्व काल में तीर्थ स्थल * होसपेट से लगभग 12 कि. मी.दूर अनेकों मुनि भगवन्तों की तपोभूमी रही होगी । हेमकूट के पूर्व दिशा में रत्नकूट की पहाड़ी पर । वर्तमान में योगिराज गुरुदेव भगवंत श्री प्राचीनता * इस क्षेत्र की प्राचीनता का इतिहास
सहजानन्दधनजी म.सा. यहीं की गुफा में अन्तिम श्री मुनिसुव्रतस्वामी भगवान के समकालीन माना
साधना व ध्यानावस्था में रहते हुवे दिव्य लोक सिधारे जाता है ।
थे। गुरुदेव ने राजस्थान के जालोर जिले में मोकलसर ___कहा जाता है कि प्रभु के परम भक्त विद्याधरों में
पहाड़ पर भी गुफाओं में कई वर्षों तक साधना
की थी । विद्यासिद्ध राजा बाली-सुग्रीव की राजधानी किष्किन्धा नगरी यहीं थी । परन्तु उस काल का पूर्ण विवरण
प्रभु प्रतिमा अति चमत्कारिक है । यहाँ पर कई मिलना कठिन है व न उस समय के मन्दिरों आदि का
प्रकार की चमत्कारिक घटनाएँ घटने व अभी भी घटते कोई पता भी ।
रहने का उल्लेख है । प्रभु प्रतिमा पर भी अनेकों बार ___ वि. सं. 1336 में यहाँ विजयनगर के निर्माण
अमी झरती है, इसलिये भक्तगण प्रभु को अमीझरा प्रारंभ होने का उल्लेख है । परन्तु उसके पूर्व भी यहाँ
चन्द्रप्रभ भगवान कहते है । हेमकूट व चक्रकूट, नाम के दो प्रसिद्ध प्राचीन जैन
कहा जाता है जब योगीराज श्रीमद तीर्थ स्थलों के होने का उल्लेख आता है ।
सहजानन्दधनजी म.सा. गुफा में ध्यानास्थ रहते थे तब आज भी सैकड़ों मन्दिरों, कोट-किलों आदि के
एक सर्प प्रायः आता रहता था, जिसे मणिधारी सर्प ध्वंसावशेष यहाँ की पहाड़ियों व समतल के विस्तार में
कहते थे । गुफा में कई बार दिव्य सुगन्ध भी महसूस
होती थी, परन्तु कहाँ से आती थी उसका पत्ता नहीं लग बिखरे हुवे नजर आते हैं, जो पूर्वकाल की गौरवगरिमा ।
सका। कहा जाता है सब देव लीला का ही कारण था । की याद दिलाते हैं । श्वे. व दि. द्वारा मान्य “सदभकत्या" नाम की
योगिराज ने श्री महावीर जैन कल्याण संघ द्वारा प्राचीन “तीर्थ माला" में भी इस तीर्थ का वर्णन है ।
संचालित गुरु श्री शांतिविजय जैन विद्यालय के नामकरण
उद्घाटन हेतु भी मद्रास में पदापर्ण करके अपने वर्तमान में हेमकूट के पूर्व में सड़क किनारे रत्नकूट
आर्शीवचन से कृतार्थ किया था । नाम के छोटे पर्वत पर स्थित श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम की विशाल जगह पर एक गुफा में यही एक मात्र
आज उनका कोई भी दिक्षित शिष्य न होने पर भी पूजित जिन मन्दिर विद्यमान है, जिसकी स्थापना
उनके अनुयायी भक्तगण भारत में जगह-जगह पर हैं। वि. सं. 2017 में योगिराज श्रीमद् सहजानन्दधनजी
अन्य मन्दिर * वर्तमान में अन्य कोई जैन मन्दिर म.सा. (जिन्हें भद्रमुनिजी भी कहते थे) के सुहस्ते हुई
यहाँ नहीं हैं परन्तु प्राचीन जैन मन्दिरों के भग्नावशेष थी। इस गुफा मन्दिर को भव्यता देने की योजना
आज भी जगह-जगह विद्यमान हैं । इनके अतिरिक्त विचाराधीन है ।
एक दादावाड़ी, एक गुरु मन्दिर, एक माताजी का __ यह स्थान पूर्व काल से हम्पी के नाम से भी
मन्दिर हैं । विख्यात है ।
कला और सौन्दर्य * यहाँ पर प्राचीन जिन मन्दिरों विशिष्टता * यह पावन क्षेत्र भगवान श्री ।
के कलात्मक भग्नावशेष विस्तार भूमि में नजर
आते हैं । मुनिसुव्रतस्वामी के समकालीन माने जाने के कारण व यह क्षेत्र विद्याधरों में विद्यासिद्ध राजा बाली-सुग्रीव की
यहाँ की पहाड़ी का वातावरण बहुत शांत है, दिव्य राजधानी किष्किन्धानगरी रहने की मान्यता के कारण
लोकसा प्रतीत होता है, जिससे आत्म शांती की मुख्य विशेषता का है ।
अनुभुति होती है । 174